हवा को हवा दो
सनम दिल चुरा लो
शराबी नयन को
जरा से झुका दो
गुलाबी बदन को
गुलों से सजा दो
मुलाकात होगी
मुझे ये बता दो
अधर को मिलन का
कभी तो मज़ा दो
सनम चेहरे से
अलकलट हटा दो
निशा अब गहन है
ये दीपक बुझा दो
चलो मान लूंगा
बहाना बना दो
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
सीने की आग अब दिखानी है मुझे घावों में आग भी लगानी है मुझे जीवन से तंग आ गया हूं यारों अब अपनी ही चिता सजानी है मुझे कुमार अहमदाबादी
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