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बुधवार, जून 13

सवाल

थी ये दुनिया पहले भी इस्लाम से,
जी रहें हैं वे भी जिन की श्रद्धा नहीं श्रीराम पे,
   थी ये दुनिया पहले भी श्रीराम से,
   जी रहें हैं वे भी जिन का इमां नहीं इस्लाम पे ,
    तो, फर्क क्या लाया ये मज़हब कोई ये समजाये मुज को,
    मिला हैं क्या इस मज़हब से कोई ये बतलाये मुज को,

साँस बिना ना जीवन था, साँस बिना ना जीवन है,
बचपन बाद यौवन था ,बचपन बाद यौवन है,
वन से पहले यौवन था, वन से पहले यौवन है,
धर्म बिना भी जीवन था, धर्म बिना भी जीवन है,....... .... तो फर्क क्या लाया ये

द्वेष को अग्नि जलती थी, द्वेष की अग्नि जलती है,
समरांगण खून पीते थे, समरांगण खून पीते हैं ,
खंज़र पीठ में लगते थे, खंज़र पीठ में लगते हैं,.................तो फर्क क्या लाया ये

पंखो में परवाज़ थी, पंखो में परवाज़ है,
सरगम में झनकार थी, सरगम में झनकार है,
कलम में बागी आग थी, कलम में बागी आग है,
रूप में इक अंदाज़ था, रूप में इक अंदाज़ है,......................तो फर्क क्या लाया ये

रत्नाकर में लहरें थीं, रत्नाकर में लहरें हैं,
रंग बदलते चेहरे थे, रंग बदलते चेहरे हैं,
रस के लोभी भंवरे थे, रस के लोभी भंवरे हैं,
सर पे सजते सेहरे थे, सर पे सजते सेहरे हैं,....................तो फर्क क्या लाया ये

भूख उदर को लगती थी, भूख उदर को लगती है,
तन में तरंगे उठती थी, तन में तरंगे उठती है,
बाग में कलियाँ खिलती थीं, बाग में कलियाँ खिलती है,
ममता की गंगा बहती थी, ममता की गंगा बहती है,.........तो फर्क क्या लाया ये,
कुमार अमदावादी

2 टिप्‍पणियां:

मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी