शब्द से गूंथी गज़ल है
हाथ में है हाथ या फिर
हाथ में मेरे कमल है
दूसरे सब रस है झूठे
प्रेम का रस ही असल है
आदमी मजबूत है फिर
आंख इस की क्यों सजल है
घाव खाकर जो न रोये
आदमी वही असल है
बात में दम है 'कुमार'
ये गज़ल भी इक कमल है
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को करती है इंतजार प्यासी बाला कुमार अहमदाबादी
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