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गुरुवार, दिसंबर 16

उड गया रे हंसा(भजन)

उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे

उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे

खाली पिंजरा रह गया, 

मिट्टी का पिंजरा रह गया.....उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे....


पतली सी नाजुक थी डोर टूटी

सांसों की जो कोमल डोर टूटी

फिर कभी ना जुड सकती थी

मिट्टी की मटकी एसी फूटी

खाली देह का पिंजरा रह गया...उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे......


तेरे कर्म कहेंगे तेरी कहानी

सत्कर्म लिखेंगे तेरी कहानी

जवानी में कर्मदीप जलाकर 

रातों को कैसे  दिन बनाया

और रोशन की जिंदगानी..........उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे.......

कुमार अहमदाबादी

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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी