उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे
उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे
खाली पिंजरा रह गया,
मिट्टी का पिंजरा रह गया.....उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे....
पतली सी नाजुक थी डोर टूटी
सांसों की जो कोमल डोर टूटी
फिर कभी ना जुड सकती थी
मिट्टी की मटकी एसी फूटी
खाली देह का पिंजरा रह गया...उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे......
तेरे कर्म कहेंगे तेरी कहानी
सत्कर्म लिखेंगे तेरी कहानी
जवानी में कर्मदीप जलाकर
रातों को कैसे दिन बनाया
और रोशन की जिंदगानी..........उड़ गया रे हंसा उड़ गया रे.......
कुमार अहमदाबादी
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