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गुरुवार, दिसंबर 16

माँ का संतोष

राजेश एवं रमेश भाई थे। राजेश बडा और रमेश छोटा था। दोनों के घर आमने सामने थे। दोनों में मिल्कत को लेकर विवाद चल रहा था। इस के कारण दोनों भाईयों में बातचीत का भी व्यवहार का भी नहीं था। उन के पिताजी छत्रचंद जी वर्षों पहले अनंत की यात्रा पर रवाना हो चुके थे। जब की माता रामरखीदेवी छोटे बेटे के साथ रहती थी।

रात के पौने बारह बजे थे। रामरखी देवी घर के बाहर कुरसी पर बैठी थी। उन की पौत्री ने आकर कहा 'दादी, आ जाओ, आप का बिस्तर बिछा दिया है। मेरा होमवर्क भी हो गया है। अब हम सो जाते हैं।' 

रामरखीदेवी ने कहा 'तू सोजा, मैं थोडी देर बाद आ रही हूँ।' 

पौत्री बोली 'ठीक है दादी, लेकिन मुझे मालूम है आप कब आओगी। ये भी मालूम है। उस समय क्यों आओगी?

इतना कहकर वो चली गयी। 

थोडी देर बाद बाहर कहीं से राजेश आया। अपने घर गया। उसे अपने घर में जाता हुआ देखने के बाद रामरखीदेवी उठी और सोने के लिये चल दी। 

कुमार अहमदाबादी

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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी