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शुक्रवार, दिसंबर 17

प्रतीक्षा का दीप

 सोलह सिंगार कर के

प्रतीक्षा के दीप को 

प्रज्वलित किया है

देखना है हवा कब

मीठा मनमोहक झोंका बनकर

कामना की ज्वाला को ठारेगी

कुमार अहमदाबादी 

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मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी