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बुधवार, नवंबर 23

बसंती रुत (मुक्तक)

बसंती रुत है प्याला भी बसंती है

सुहानी देह, जोबन भी रसवंती है

देह लता की कोमलता! क्या कहूं

जैसे सुरीला राग जयजयवंती है

कुमार अहमदाबादी


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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी