मूर्ख मन रुप को छेड़ना मत कभी, ज्योत है शांत है पर वो आग है
भस्म कर देगी ज्वाला बनी वो अगर, उस के मन में धधकता अनुराग है
प्यार देखा है डंक देखे नहीं, सोच लेना अगर स्पर्श करना हो तो
गाल पर जो झूले वो अलकलट नहीं, रूप के कैफ में डोलता नाग है
है सुधा आंख में संग हलाहल भी है, जांच विष की कभी करनी न चाहिए
शांत सागर है तूफान को मत जगा, उस के हर ज्वार में मौत का फाग है
कंटकों के अधिकार को जान ले, फूल को छेड़ने वाले ये जान ले
ये किसी की नहीं है निजी संपदा, रात दिन चाकरी कर रहा बाग है
कुमार अहमदाबादी
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