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बुधवार, नवंबर 30

रगों में दौड़ता है गुजरात



         गुजरात,
मेरी रगों में, लहू बनकर दौड़ता है
दिल में धड़कन बनकर धड़कता है
दिमाग में विचार बनकर उभरता है
सांसों में जीवन बनकर रहता है
आंखों को दृश्य बनकर दिखता है
जीभ पर स्वाद बनकर घुलता है
कानों को गरबा बनकर सुनाई देता है
कलम से शब्दगगंगा बनकर टपकता है
गुजरात,
मेरी रगों में लहू बनकर दौड़ता है
कुमार अहमदाबादी

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