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शुक्रवार, जून 16

वो ही भरेंगे मांग(रुबाई)


 शादी के नये मस्त नशे में है चूर

ये सोचती है क्यों है सनम मुझ से दूर

दफ्तर से आकर वो ही भरेंगे अब मांग

चुटकी में लिये बैठी है कब से सिंदूर

कुमार अहमदाबादी

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मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी