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शुक्रवार, जून 9

निशा की महक(रुबाई)



 बाँहों में आकर प्यास बहक जाती है

ज्यों आग हो चूल्हे की दहक जाती है

फिर प्रेम की गंगा में निरंतर बहकर

संतृप्त निशा रानी महक जाती है

*कुमार अहमदाबादी*

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मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी