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शनिवार, जून 24

खिड़की में खड़ी है(रुबाई)


खिड़की  में  खड़ी  है आंखें  हैं  पथ  पर

बेचैन बड़ी है आंखें  हैं पथ पर

आए नहीं क्यों साजन अब तक लेने

सावन की झड़ी है आंखें हैं पथ पर

कुमार अहमदाबादी

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी