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रविवार, मार्च 24

बेटों को संस्कार सीखाओ

 बेटों को संस्कार सीखाओ

बेटी बचाओ बेटी पढाओ


एक अभियान बेटी बचाओ बेटी पढाओ चल रहा है। जब कि सच पूछें तो,                       

बेटे को समझाओ बेटे को सीखाओ अभियान चलाने की आवश्यकता है। 


आप सोचेंगे कि भाई ये क्या बात कह रहे हो। 


आप जरा सोचें की, बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान चलाने आवश्यकता क्यों खडी हुई? इसलिये कि बेटियों को वो संघर्ष करने पडता है। जो संघर्ष दरअसल होना ही नहीं चाहिये। 

बेटीयां जब घर से बाहर निकलती है तब उन्हें कई प्रकार की मानसिक व शारीरिक प्रताडना का सामना करना पडता है। छोटा सा उदाहरण देख लिजिए। लड़कियां बस में या बस की लाइन में खडी हो तो लड़के और कुछ पुरुष भी अनुचित तरीके से स्पर्श करते हैं । भद्दे इशारे करते हैं। बेटियों  के साथ एसा व्यवहार करीब करीब हर स्थान पर होता है। संभवतः सौ में से अस्सी से नब्बे पुरुष लड़कियों के साथ इसी प्रकार का वर्तन करते हैं। 

तो, प्रश्न ये होता है कि परिवर्तित किसे होना चाहिये। जो गलत व्यवहार कर रहा है उसे?  या जो गलत व्यवहार सहन करता है उसे? इसलिये  बेटे को सीखाओ बेटे को समझाओ ताकि वो लड़कियों से स्त्रियों से गलत व्यवहार करना स्वेच्छा से बंद करे। 


एक दो मुद्दे पुरुषों को भी समझने चाहिये कि,

वे खुद को परिवर्तित कर लें वर्ना गर बेटियों ने व्यवहार परिवर्तित करवाया तो भविष्य में आप के लिये एसी समस्याएं खडी होगी। जिन के बारे में आपने सोचा भी ना होगा। बेटियों ने अगर समाज का, व्यवस्था का संचालन अपने नियंत्रण में ले लिया तो जो कुछ होगा। वो आप की कल्पना से परे होगा।

इसीलिए बेटी बचाओ बेटी पढाओ और साथ में बेटे को समझाओ

कुमार अहमदाबादी

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