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सोमवार, मार्च 11

दर्द रह गया(मुक्तक)

 

छल गयी आशा को बरखा खेत सूखा रह गया

चक्र टूटा अर्थ का व्यापार ठंडा रह गया

क्या जगत का तात करता वारि जब बरसा नहीं

पेट भूखा आंख भीनी दर्द खारा रह गया

वारि-पानी

कुमार अहमदाबादी

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी