*परंपरा*
लेखिका - एषा दादावाला
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
जामनगर में मेहमानों को एक कतार में बिठाकर अपने हाथ से बुंदी के लड्डु परोसने वाले मुकेश अंबानी को देखकर मन में प्रश्न हुआ। अब कुछ लोग करेंगे?
जो लोग दो पांच करोड की आसामी है। वे शादी ब्याह में विदेशों से शेफ(रसोइया) बुलवाते हैं। दुनिया भर की सुगर फ्री मीठईयों का काउंटर रखकर तरह तरह की शेखियां बघारते हैं। जब की पौने दस लाख करोड(कोई फटाफट बता सकता है। इस रकम में कितने शून्य होंगे? अब सुगर फ्री चोंचले वाले क्या करेंगे?) जिस के पास है। वो धनपति भोजन के लिये पारंपरिक कतार व्यवस्था में आमंत्रितों को भोजन करवा रहा है।
श्रीमंतो को देख देख कर आम आदमी ने भी कतारबद्ध भोजन करवाने की व्यवस्था को छोडकर भारी भरकम बुफे की व्यवस्था अपना ली। जिस में नोर्थ इन्डियन, साउथ इंडियन, थाई, इटैलियन आदि आदि काउंटर सजाये जाते हैं। अब अरब खरबपति मुकेश अंबानी ने फिर से कतारबद्ध बिठाकर भोजन करवाने की रीत को पुर्नजीवित किया है। मेहमानों को अपने हाथों से भोजन परोसने की रीत को फिर शुरू किया है।
अब?
एक समय था। जब भोजन में भारतीय व्यंजनो की बोलबाला थी। हर प्रांत के अपने अपने व्यंजन थे। गुजरात में दाल, लड्डु व आलू की मीठी सब्जी, फूलवडी, लापसी थे। राजस्थान में मोतीपाक सब से उत्तम मीठाई मानी जाती थी। बाद में वो स्थान कतली ने ले लिया। तब घर का लगभग हर व्यक्ति भोजन परोसने में गौरव का अनुभव करता था। बच्चे बूढे स्त्रियां सब मेहमानों को भोजन करवा कर अद्वितीय आनंद प्राप्त करते थे।
फिर आपसी स्पर्धा में कई विसंगतियां आ गयी।
ये मानकर की हमारे पास तो बहुत है; नो गिफ्ट प्लीज एवं एवं ओन्ली ब्लेसिंग्स को बडे बडे अक्षरों में लिखवाने का दौर भी चला। जब की इधर अनंत अंबानी जो की आज अरबों का भावि वारसदार है। उसे गुड़ के साथ सगुन की नोट लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।
अब वो वर्ग क्या करेगा। जो दंभ की दुनिया में जीता था।
प्रतिस्पर्धा के जमाने में अपनी हस्ती को बड़ा बताने या साबित करने के प्रयास जारी रखेंगे, या; प्रेम से अपनेपन से बुंदी, मोतीपाक, लापसी को शादी ब्याह में बनवाकर उन के समर्थक होने का प्रमाण देंगे?
*लेखक - एषा दादावाला*
*अनुवादक - कुमार अहमदाबादी*
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