मैं तराजू हूँ। वो तराजू, कुछ पलों बाद जिस में खडा होकर अर्जुन मत्स्यवेध करनेवाला है। मुझे ये चिंता सता रही है। क्या मैं संतुलित रह पाउंगा? क्यों कि अर्जुन की सफलता व निष्फलता मेरे संतुलित रहने या ना रहने पर निर्भर है। मैं जानता हूँ। कृष्ण पानी को स्थिर रखेंगे। अगले कुछ पल साबित करनेवाले हैं। लक्ष्य को भेदना हो, प्राप्त करना हो तो लक्ष्य पर नजर रखनी आवश्यक है। अगर अर्जुन यानि भेदक अपने शरीर को स्थिर व संतुलित रखेगा; तो ही जलरुपी तत्व स्थिर रहेगा। भेदक को अपनो सांसों को भी नियंत्रित रखना होगा। सांस अनियंत्रित होते ही शारीरिक व मानसिक संतुलन बिगड जाता है। संतुलन बिगडने के बाद लक्ष्य को भेदना असंभव हो जाता है। मुझे एक और संभावना चिंतित कर रही है। क्या हवा स्थिर व शांत रह सकेगी?
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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बुधवार, मार्च 6
तराजू की चिंता
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