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सोमवार, मार्च 4

भांग और शिवरात्रि व होली(अनूदित लेख)

भांग और शिवरात्रि व होली(अनूदित लेख) 

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी


ता. 03-03-2024 [रविवार] के गुजरात समाचार की रवि पूर्ति में छपे लेख

(लेखक - भालचंद्र जानी)  का अनुवाद



गुजरात समाचार की रविपूर्ति (03-03-2024 के दिन) में भांग के बारे में एक अच्छा लेख छपा ही. लेख हॉटलाइन कॉलम में छपा है. इस कॉलम के लेखक भालचंद्र जानी है. उस का हिंदी अनुवाद कर के दोपहर बाद रखने का प्रयास करुंगा. मूल लेख लम्बा है. दो या तीन हिस्सों में पोस्ट करना पड़ेगा. एक झलक दे देता हूं.


मैंने शंकर का एक रूप निराला देखा

जटा में गंगा, हाथ में भंग का प्याला देखा

जिसे भांग का सेवन करना अच्छा लगता है. वो तो शंकर का नाम जोड़े बिना भी भांग का नशा करता है. लेकिन धर्म को मानने वाले भगवान शंकर का नाम पहले लेते हैं. कहते हैं शिवजी भांग पीकर मस्ती में मस्त रहते थे. तांडव नृत्य करते थे. एसी बातें कर के शिव भक्त मस्ती के लिए भांग का सेवन करते हैं. शिवरात्रि के दिन शंकर के मंदिर में जाकर उन का दर्शन कर के भांग को प्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं. भक्त प्रसाद के रुप में जो भांग लेते हैं. वो छानी हुई होती है. 

भांग गुजरात में सरकार द्वारा कानूनन प्रतिबंधित है. इसलिए कोई भी वैध या हकीम एसी कोई दवाई जिस में भांग शामिल हो. किसी अपरिचित दर्दी को देते नहीं हैं. लेकिन ये भी सत्य है. आयुर्वेद में भांग के कई औषधीय गुणों के बारे में वर्णन है. शराब और भांग में एक अंतर ये है की शराब के व्यसनी व्यक्ति को शराब शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक रुप से बहुत हानि पहुंचाती है. जब की भांग का अतिरेक व्यक्ति को बहुत ज्यादा या गंभीर नुकसान नहीं करता. इस के बावजूद भांग का उपयोग करना जरुरी हो तो उस का उपयोग औषधि के रुप में करना चाहिए; व्यसन के रुप में नहीं. 

भांग का उपयोग पाचन तंत्र की कार्य क्षमता विकसित करने अच्छे से कार्य करने के उद्देश्य से किया जाता है. पीड़ा के शमन यानि पीड़ा को दबाने के लिए भी किया जाता है. हालांकि औषध के  रुप में उपयोग करने से पहले भांग का शुद्धिकरण करना पड़ता है. उस के लिए भांग की पत्तियों को गाय के दूध में उबालने के बाद साफ पानी से धोकर सुखानी चाहिए. सूखी हुई पत्तियों को गाय के घी में सेकने के बाद उन्हें औषधि के रुप में उपयोग में लिया जाता है. 

भांग की पत्तियां और बीज दोनों का ही औषधि के रुप में उपयोग होता है. ये दोनों उष्ण होने से वातहर और कफहर है.लेकिन पित्तवर्धक है. वातहर होने के कारण ये पीड़ा का शमन करता है.

धनुर्वात या कुत्ते के काटने से हड़कवा होने से शरीर में खिंचाव आने पर भांग दी जाती है. भांग का धुआं देने से खिंचाव में आराम मिलता है.आराम मिलने से व्यक्ति को नींद आ जाती है. हड़काव के कारण दर्दी अगर उधम मचा रहा हो तो उसे शांत करने के लिए पीड़ा को दबाने के लिए भांग को ज्यादा मात्रा में दिया जाता है. हालांकि इस से हड़काव ठीक नहीं होता. लेकिन व्यक्ति को पीड़ा का पता नहीं चलता.हमारे यहां 99 प्रतिशत लोग सिर्फ महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने के बाद प्रसाद के रुप में ही भांग पीते हैं.

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