हर घड़ी ये इक नया आयाम है
ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है
ज़िंदगी भर भागता ही मैं रहा
अब चिता पर लेटकर आराम है
ज़िंदगी है योग ही है ज़िंदगी
आ रही हर सांस प्राणायाम है
पास बैठे फूल ने हंसकर कहा
फूल जैसी खूबसूरत शाम है
संगिनी के साथ मिल जुलकर रहो
तीर्थ है वो वो ही यात्राधाम है
ज़िंदगी का सत्य लिखता है ‘कुमार’
ज़िंदगी पूरी सतत व्यायाम है
शारदा का हाथ तुझ पर है ‘कुमार’
उस के कारण ही जरा सा नाम है
कुमार अहमदाबादी
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