पाबंद अगरचे अपनी ख़्वाहिश के रहो
लायल सब्जेक्ट तुम ब्रिटिश के रहो
कानून से फायदा उठाना है अगर
हामी न किसी ख़राब साजिश के रहो
अकबर इलाहाबादी
भावार्थ लेखक - कुमार अहमदाबादी
शायर अकबर इलाहाबादी ने इस रुबाई में सांकेतिक रुप से वर्ग विशेष को दो मुद्दे कहे हैं। एक में अपने लक्ष्य पर नजर केन्द्रित रखने की सलाह दी है। यहां एक बात याद दिलाना चाहता हूँ। अकबर इलाहाबादी और उन के जैसे कई व्यक्ति सर सैयद की ब्रिटिशरों से सहयोग कर के लाभ लेने की नीति से बहुत प्रभावित थे। संभवतः इसीलिए शायर ने दूसरे मुद्दे में ब्रिटिशरों से वफादारी करने की सलाह दी है; साथ ही साथ ये चेतावनी भी दी है कि कानून से फायदा उठाना है, लाभ लेना है तो किसी भी खराब साज़िश के हामी यानि मत होना। लगता है शायर स्वतंत्रता के आंदोलन को अंग्रेजों के विरुद्ध साज़िश समझते थे।
अब इन सब मुद्दों को उस समय के राजकीय वातावरण के परिप्रेक्ष्य में देखते समझते हैं।
अकबर इलाहाबादी ने अपनी जवानी के शिखर पर ब्रिटिश साम्राज्य की बुलंदी देखी थी। उस समय भारत का एक वर्ग अंग्रेजों से वफादार था। वो अंग्रेजों को खुश कर के उन से जो भी लाभ मिल सके। उसे लेने की रणनीति पर अमल कर रहा था।
लेकिन अंग्रेजों से यानि कानून से लाभ उसी परिस्थिति में मिल सकता था। जब उन से सहयोग की नीति अपनाई जाये। उन के विरुद्ध कोई षड्यंत्र ना रचा जाए ना ही एसे किसी षड्यंत्र में हिस्सा लिया जाए। जिस से अंग्रेजों को किसी प्रकार का कोई नुक्सान हो।एसा करने वाले दोनों हाथों में लड्डू लेकर बैठे थे।
अंग्रेजों के विरुद्ध षड्यंत्र ( जो हमारे दृष्टिकोण से षड्यंत्र ना होकर स्वतंत्रता का आंदोलन था ) सफल होने पर अंग्रेजों से अच्छे संबंध रखने वालों को भी स्वतंत्रता मिलती। लेकिन षड्यंत्र निष्फल होने पर उन्हें किसी प्रकार का नुक्सान नहीं होता; क्यों कि वे कानून के विरुद्ध किये जाने वाले षड्यंत्र यानि स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यक्रमों में शामिल नहीं होते थे।
इतने विष्लेषण के बाद आप खुद समझ जाइये। एक शायर की कलम की ताकत क्या होती है। वो निशाना कहां लगाता है और तीर क
हां मारता है।
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