Translate

बुधवार, जुलाई 17

भारतीय संस्कृति में गुरु की महिमा


*भारतीय संस्कृति में गुरु की महिमा*

 अनुवादक व लेखक - महेश सोनी 


*प्रस्तुत लेख का ज्यादातर हिस्सा अनुवादित है। जो* *आज(18-07-2024)के गुजरात समाचार की धर्मलोक आवृत्ति पृष्ठ नं.4* *पर छपे लेख का है; थोडा बहुत मैंने लिखा है।*


२१ जुलाई आषाढ़ सुद विक्रम संवत २०८१ के दिन यानि दो दिन बाद गुरु पूर्णिमा है। सनातन  भारतीय संस्कृति में इस दिन का सांस्कृतिक व एतिहासिक महत्व है। 


महर्षि वेद व्यास ने ज्ञान के प्रकाश को दसों दिशाओं में फैलाने का कार्य किया था। उन्होंने लोगों के मन में बसे अज्ञान रुपी अंधेरे को सदज्ञान का प्रकाश फैलाकर दूर किया था। 


गुरु के सानिध्य से जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल जाते हैं। गुरु की कृपा और शिष्य का समर्पण दोनो का समन्वय हो जाए तो शिष्य का संपूर्ण जीवन रुपांतरित हो जाता है। सद्गुरु शिष्य को प्रेम सीखाता है; अहंकार को दूर कर के निराकार परमात्मा के मार्ग पर ले जाता है। सद्गुरु परमात्मा को प्राप्त करने का एक द्वार है। सनातन संस्कृति मे गुरु शिष्य के संबंध को दिव्य माना गया है।

गुरु का सानिध्य पत्थर दिल और जड़ शिष्य को भी पारस बना देता है।  हमारे समाज की बात करें तो हमारे समाज में गुरु का आशिर्वाद शिष्य को कुशल, उत्कृष्ट कलाकार( मेरा मानना है कि हम यानि सुनार कलाकार हैं, कारीगर नहीं) बनाता है। 

गुरु प्रकाश का वो स्तंभ है। जिस से दूर दूर तक रोशनी फैलती है। गुरु की महिमा अनंत है। गुरु की महिमा को संत कबीर ने लाजवाब शब्दों 


*तीरथ नहाये एक फल, संत मिले फल चार*

*सद्गुरु मिले फल अनंत, कहते कबीर विचार*


में पेश किया है। 


शास्त्रों में माता पिता को प्रथम गुरु रहा गया है। उन के बाद शिक्षक को महत्व दिया गया है। जो शिष्य को आर्थिक, भौतिक प्रगति का मार्ग दिखाता है। उन के बाद का स्थान आध्यात्मिक गुरु को प्राप्त हैं। जो शिष्य को जीवन मृत्यु के बंधन से मुक्त कर परमानंद द्वारा इश्वर को प्राप्त करने मार्ग बताता है। सद्गुरु मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग को दिखाता है।


प्रस्तुत लेख का ज्यादातर हिस्सा अनुवादित है। जो आज (18-07-2024) के गुजरात समाचार की धर्मलोक आवृत्ति पृष्ठ नं.4 पर छपे लेख का है। कुछ मैंने लिखा है। 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

किस्मत की मेहरबानी (रुबाई)

  जीवन ने पूरी की है हर हसरत मुझ को दी है सब से अच्छी दौलत किस्मत की मेहरबानी से मेरे आंसू भी मुझ से करते हैं नफरत कुमार अहमदाबादी