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बुधवार, जुलाई 31

नखरा करती हो नखरे से (रुबाई)


करती हो तुम नखरा भी नखरे से 

बालों को सजाती हो सनम गजरे से

आंखों को धारदार करती हो तुम

दीपक की लौ से निर्मित कजरे से

कुमार अहमदाबादी 

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किस्मत की मेहरबानी (रुबाई)

  जीवन ने पूरी की है हर हसरत मुझ को दी है सब से अच्छी दौलत किस्मत की मेहरबानी से मेरे आंसू भी मुझ से करते हैं नफरत कुमार अहमदाबादी