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शनिवार, जुलाई 13

क्या भारत यूरोप का गोदाम था(अकबर इलाहाबादी की ग़ज़ल का भावार्थ)

 

*क्या भारत यूरोप का गोदाम था*

भावार्थ लेखक - कुमार अहमदाबादी


रुबाई का भावार्थ समझने से पहले कवि अकबर इलाहाबादी के जीवनकाल के बारे में थोडी सी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। अकबर इलाहाबादी का जन्म १६ नवंबर १८४६ के दिन हुआ था। अवसान १५ फरवरी १९२१ के दिन हुआ था।बालपन में उन्हों ने मुगल साम्राज्य का अंत और अंग्रेजी राज्य का आरंभ देखा। आयु बढ़ने के साथ साथ अंग्रेजी राज्य के चढते सूरज को देखा। जब अवसान हुआ तब भारत में अंग्रेजी राज का सूरज पूरी तरह तप रहा था। इस पृष्ठभूमि को दिमाग में रखकर इस रुबाई को समझने का प्रयास कीजिएगा।


ये बात गलत कि दार-उल-इस्लाम है हिन्द

ये झूठ कि कि मुल्क-ए-लछमन-ओ-राम है हिन्द 

हम सब हैं मुती-ओ-खै़र-ख़्वाह-ए-इंग्लिश

यूरोप के लिये बस एक गोदाम है हिन्द 

अकबर इलाहाबादी

इस रुबाई में कवि अकबर इलाहाबादी ने भारत को यूरोप का गोदाम कहा है। गोदाम वो होता है जहां नव उत्पादित माल रखा जाता है। शायर ने उस समय खंड में भारत में बढ रहे यूरोपीकरण का मुद्दा व्यक्त किया है। उस समय भारत में अंग्रेजों के साथ साथ कहीं कहीं पोर्टुगीज व फ्रेन्च भी सत्ताधीश थे। उधर यूरोप में औद्योगिक क्रांति के कारण उत्पादन बढ़ गया था। 

लगभग सारे यूरोपीयन अपने देश के उत्पादनों को भारत में बेचते थे। भारत में यूरोप में उत्पादित माल के साथ साथ वहां की संस्कृति भी प्रवेश कर रही थी। 

भारत में अंग्रेजों की संस्कृति के प्रवेश व असर को वी. शांताराम ने अपनी मूवी नवरंग के आरंभिक दृश्यों में बहुत कुशलता से बताया है। नवरंग के उस दृश्यों में से एक में दो व्यक्ति भारतीय वेशभूषा यानि धोती कुर्ता पहने हुए वस्त्रों की दुकान में जाते हैं। वे जब वापस निकलते हैं; तब टाई सूट व पैंट पहनकर निकलते हैं। 

कुल मिलाकर यूरोप द्वारा अपने अच्छे बुरे उत्पादनों के साथ अपनी संस्कृति से भारत के जनमानस को प्रभावित करने के घटना क्रम को कवि अकबर इलाहाबादी ने बेहद खूबसूरती से सिर्फ चार पंक्तियों में व्यक्त कर दिया है।

कुमार अहमदाबादी

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