जीवन ने पूरी की है हर हसरत
मुझ को दी है सब से अच्छी दौलत
किस्मत की मेहरबानी से मेरे
आंसू भी मुझ से करते हैं नफरत
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
जीवन ने पूरी की है हर हसरत
मुझ को दी है सब से अच्छी दौलत
किस्मत की मेहरबानी से मेरे
आंसू भी मुझ से करते हैं नफरत
कुमार अहमदाबादी
तूं शरम आंख री छोड मत
बात सुण सामने बोल मत
आठ दस कोस सूं लायी हूं
पोणी ने फालतू ढोळ मत
देख तूं होस में कोयनी
भाई री पोल तूं खोल मत
एकता घर री नींव है
बोल सूं नींव ने खोद मत
हाथ पग टूट जासी 'कुमार'
सामने ढाळ है दोड मत
कुमार अहमदाबादी
सजनी तेरा कमाल का है नख़रा
चंचल कन्या की चाल सा है नख़रा
पर जाने क्यों कभी कभी लगता है
इक मछुआरे की जाल सा है नख़रा
कुमार अहमदाबादी
पूजा का कक्ष
अनूदित
लेखक - वसंत आई सोनी, अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
अहमचंद नाम के आदमी ने व्यापार से बहुत धन कमाया। जैसे अक्सर लोग करते हैं। उसने नया भव्य महलनुमा बंगला बनवाया। बंगले की साज सज्जा पर भी खूब धन खर्च किया। रोज पूजा करने के लिये बंगले में तीसरी मंज़िल पर अलग से एक पूजा कक्ष भी बनवाया। पूजा का बनवाने के बाद पूजा का में पधारने के लिये भगवान को न्यौता दिया।
भगवान के पधारने पर अहमचंद ने उन्हें रसोई गृह, भोजन कक्ष, मुख्य शयन कक्ष एवं अच्बंछी तरह से सुशोभित बंगला बताया। पूरा बंगला बताने के बाद भगवान को पूजा का में ले गया। आसन बिछाकर भगवान को विराजमान होने के लिये कहा कि *आप को यहां विराजमान होना है। आप को अब यहीं रहना सोना उठना है। ये आप का कक्ष है। भगवान मंद मंद मुस्कुराये और बोले ठीक है जैसा तुम चाहो।
नये बंगले का सुनकर एक दो दिन बाद वहां हाथ साफ करने के उद्देश्य से चोर आये। माल मिल्कत लूटने लगे। लेकिन थोडी ही देर में आवाजों से अहमचंद की आंख खुल गयी। वो चिल्लाने लगा। जिससे घर के दूसरे लोगों की भी आंखें खुल गयी। सब को जागते देखकर चोर हड़बड़ा गये व सबकुछ छोड़कर भाग खड़े हुए।
अहमचंद ने दूसरे दिन सुबह भगवान को पूरी घटना सुनाकर पूछा। भगवान जब चोर आये तब आप मुझे मदद करने के लिये क्यों नहीं आये। भगवान पहले तो थोड़ा सा मुस्कुराये; फिर बोले। भाई, तुमने मुझे सिर्फ पूजा का कहना सौंपा है; इसलिये पूजा कक्ष का मालिक मैं हूं। बाकी सारे बंगले के मालिक तुम हो। तुमने मुझे पूरा बंगला बताया था जरुर मगर सिर्फ पूजा का कक्ष सौंपा था। चोर यहां आते तो मैं अवश्य सक्रिय होता। लेकिन चोर यहां आये नहीं सो मैं सक्रिय हुआ नहीं। रही बाकी बंगले की जिम्मेदारी तुम्हारी थी।
ये मेरा, मेरा परिवार, मेरा घर, मेरी कार, मेरा धन इंसान हंमेशा मेरा मेरा में डूबा रहता है। अगर सबकुछ परमात्मा पर छोड़ दे तो सबकुछ परमात्मा संभाल लेता है।
गीता के नवें अध्याय में कृष्ण ने कहा है *जो भक्तजन परमेश्वर को निष्काम भाव से याद रखता है, पूजा करता है। इस सत्य को याद रखता है कि चिंतनशील भक्तों के योगक्षेम का वहन मैं करता हूं। उन के भय, चिंता, दुःख, निराशा के समय उन के साथ रहता हूं। प्रत्येक कार्य को पूर्ण करवाता हूं।*
गुजरात समाचार के ता.19-09-2024 गुरुवार की धर्मलोक पूर्ति के चौथे पृष्ठ पर छपे वसंत आई. सोनी के लेख का संक्षेपानुवाद
संक्षेपानुवादक -कुमार अहमदाबादी
मोसम सी फूटरी फरी है सजनी
चंचळ गोरी अलबेली है सजनी
मोसम री खूबसूरती री माया
कवि रा सबदों ने लागी है सजनी
कुमार अहमदाबादी
हैं कान्हा से अलबेले गोकुल में
नवजीवन के हैं मेले गोकुल में
मस्ती में झूमें नाचें गाएं रास
राधा संग कान्हा खेले गोकुल में
कुमार अहमदाबादी
जीवन ने पूरी की है हर हसरत मुझ को दी है सब से अच्छी दौलत किस्मत की मेहरबानी से मेरे आंसू भी मुझ से करते हैं नफरत कुमार अहमदाबादी