साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
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शुक्रवार, मार्च 29
छेड़ दो (मुक्तक)
गुरुवार, मार्च 28
सच डरता नहीं (कहानी)
सच डरता नहीं
कौशल और विद्या दोनों बारहवीं कक्षा में पढते थे। दोनों एक ही कक्षा में भी थे। दोनों ही ब्रिलियन्ट स्टूडेंट थे, इसी वजह से दोनों में दोस्ती भी थी; और एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा भी थी। परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिये दोनों खूब पढाई करते थे। पढाई में एक दूसरे की मदद भी करते थे।
लेकिन जैसा की अक्सर होता है। एक लडके व एक लडकी की दोस्ती को हमेशा शक की नजर से ही देखा जाता है। कौशल व विद्या के साथ भी एसा ही हुआ। जो विद्यार्थी व विद्यार्थीनी पढाई में दोनों का मुकाबला नहीं कर सकते थे। उन्हों ने दोनों के संबंधों के बारे में अफवाहें उडाना शुरु कर दिया। धीरे धीरे अफवाहें जोर पकडती गई। कौशल व विद्या को भी अफवाहों के बारे में पता चला तो दोनों हंसकर रह गये।
लेकिन एक दिन किसी ने अफवाह को एकदम निम्न स्तर तक पहुंचा दिया। उस दिन विद्या बहुत विचलित हो गई। इतनी विचलित हो गई कि आधी छुट्टी के दौरान आत्महत्या का इरादा कर के स्कूल से थोडी दूर से गुजर रहे रेल्वे ट्रेक की तरफ जाने लगी। विद्या की एक सहेली ने कक्षा में आकर वहां बैठे विद्यार्थियों को विद्या के इरादे के बारे में बताया। कौशल भी क्लास में था। कौशल तथा अन्य विद्यार्थी विद्या को वापस लाने के लिये उस की तरफ भागे।
वे सब विद्या के पास जाकर उसे समझाने लगे। मगर, विद्या ने किसी की नहीं सुनी और वो बस ट्रेक की तरफ चलती रही। दो पांच मिनट तक समझाने के बावजूद जब विद्या नहीं मानी तो आखिरकार कौशल ने उस का हाथ पकड लिया; और उसे वापस स्कूल की तरफ खींचता हुआ सा लेकर जाने लगा। विद्या ने विरोध किया पर कौशल नहीं माना। तब तक वहां अच्छी खासी भीड भी जमा हो गई।
भीड को जमा होते देखकर विद्या की एक सहेली ने कौशल से कहा 'कौशल, हाथ छोड दो, भीड इकट्ठा हो रही है। तमाशा हो रहा है।' ये सुनकर कौशल ने हाथ छोड दिया। हाथ छुटते ही विद्या फिर रेल्वे ट्रेक की तरफ भागी। कौशल ने दौडकर उसे वापस पकड लिया और स्कूल की तरफ ले जाने लगा। इस बार कोई कुछ नहीं बोला। उस के बाद कौशल वहां से स्कूल तक विद्या का हाथ पकडे रहा। वैसे हाथ पकडे हुए ही वो विद्या को आचार्य की ऑफिस में ले गया। आचार्य ने नजर उठाकर दोनों को देखा। चेहरे पर प्रश्नार्थ के भाव उभरे। उन भावों को देखकर कौशल ने आचार्य को बताया कि 'ये आत्महत्या के लिये ट्रेक की तरफ जा रही थी। इसे वापस लेकर आया हूँ'
आचार्य ने विद्या का हाथ पकडा और अपने पास एक कुर्सी पर बिठाया। फिर कौशल की तरफ मुडकर दो पल उसे गहरी नजरों से देखने के बाद बोलीं 'वेलडन कौशल, तुम्हारी निर्भीकता और नीडरता ने मुजे सत्य का प्रमाण दे दिया है। अब आगे मैं सबकुछ संभाल लूंगी। तुम्हें डरने की कोई जरुरत नहीं'
कुमार अहमदाबादी
रविवार, मार्च 24
बेटों को संस्कार सीखाओ
बेटों को संस्कार सीखाओ
बेटी बचाओ बेटी पढाओ
एक अभियान बेटी बचाओ बेटी पढाओ चल रहा है। जब कि सच पूछें तो,
बेटे को समझाओ बेटे को सीखाओ अभियान चलाने की आवश्यकता है।
आप सोचेंगे कि भाई ये क्या बात कह रहे हो।
आप जरा सोचें की, बेटी बचाओ बेटी पढाओ अभियान चलाने आवश्यकता क्यों खडी हुई? इसलिये कि बेटियों को वो संघर्ष करने पडता है। जो संघर्ष दरअसल होना ही नहीं चाहिये।
बेटीयां जब घर से बाहर निकलती है तब उन्हें कई प्रकार की मानसिक व शारीरिक प्रताडना का सामना करना पडता है। छोटा सा उदाहरण देख लिजिए। लड़कियां बस में या बस की लाइन में खडी हो तो लड़के और कुछ पुरुष भी अनुचित तरीके से स्पर्श करते हैं । भद्दे इशारे करते हैं। बेटियों के साथ एसा व्यवहार करीब करीब हर स्थान पर होता है। संभवतः सौ में से अस्सी से नब्बे पुरुष लड़कियों के साथ इसी प्रकार का वर्तन करते हैं।
तो, प्रश्न ये होता है कि परिवर्तित किसे होना चाहिये। जो गलत व्यवहार कर रहा है उसे? या जो गलत व्यवहार सहन करता है उसे? इसलिये बेटे को सीखाओ बेटे को समझाओ ताकि वो लड़कियों से स्त्रियों से गलत व्यवहार करना स्वेच्छा से बंद करे।
एक दो मुद्दे पुरुषों को भी समझने चाहिये कि,
वे खुद को परिवर्तित कर लें वर्ना गर बेटियों ने व्यवहार परिवर्तित करवाया तो भविष्य में आप के लिये एसी समस्याएं खडी होगी। जिन के बारे में आपने सोचा भी ना होगा। बेटियों ने अगर समाज का, व्यवस्था का संचालन अपने नियंत्रण में ले लिया तो जो कुछ होगा। वो आप की कल्पना से परे होगा।
इसीलिए बेटी बचाओ बेटी पढाओ और साथ में बेटे को समझाओ
कुमार अहमदाबादी
गुरुवार, मार्च 21
पूजा किसे कहते हैं?(अनुदित)
पूजा किसे कहते हैं?
रंगों का गीत
गुरुवार, मार्च 14
सोमवार, मार्च 11
भंगिया
तर्ज - ये गोटेदार लहंगा
सेवक लाये हैं भंगिया, भोले बाबा छान के
भर भर के लोटा पीले, मस्ती में छान के ।। टेर।।
बड़े जतन से हौले -2, भांग तेरी घुटवाई,
केसर पिस्ता खूब मिलाया, छान लेई ठण्डाई,
हमरी भी रख ले बतिया-2, सेवक तू जान के।।१।।
गौरा मैया के हाथों से, भांग सदा तू खाये,
तेरे सेवक बडे चाव से, आज घोटकर लाये,
सावन की बुंदे थिरके-2, रिमझिम की ताल पे।।२।।
और देव होते तो लाते, भर भर थाल मिठाई,
लेकिन भोले बाबा तुझ को , भांग सदा ही भाई
भक्त दया का भोले-2, हम को भी दान दे
ये रचना मैंने एम.जे. लायब्रेरी की किताब रस-माधुरी(श्री सांवरिया भक्त मंडल द्वारा संग्रहित व प्रकाशित) में पढी थी। बहुत मीठी व प्यारी लगी; सो रसिकों के लिये यहां पोस्ट कर दी।
दर्द रह गया(मुक्तक)
छल गयी आशा को बरखा खेत सूखा रह गया
चक्र टूटा अर्थ का व्यापार ठंडा रह गया
क्या जगत का तात करता वारि जब बरसा नहीं
पेट भूखा आंख भीनी दर्द खारा रह गया
वारि-पानी
कुमार अहमदाबादी
शुक्रवार, मार्च 8
कुंदन कला - कलाइयों की अदभुत कला
बुधवार, मार्च 6
याद है शरारत (मुक्तक)
थी बहुत ही वो प्यारी हिमाकत सनम
भा गयी थी नशीली शराफत सनम
मैं नहीं भूलना चाहता स्पर्श वो
याद है होठ की वो शरारत सनम
कुमार अहमदाबादी
होली गीत(विभिन्न छंदों में)
(प्रिल्युड)
(अपवाहक एवं विद्युल्लेखा छंद में)
तराजू की चिंता
मैं तराजू हूँ। वो तराजू, कुछ पलों बाद जिस में खडा होकर अर्जुन मत्स्यवेध करनेवाला है। मुझे ये चिंता सता रही है। क्या मैं संतुलित रह पाउंगा? क्यों कि अर्जुन की सफलता व निष्फलता मेरे संतुलित रहने या ना रहने पर निर्भर है। मैं जानता हूँ। कृष्ण पानी को स्थिर रखेंगे। अगले कुछ पल साबित करनेवाले हैं। लक्ष्य को भेदना हो, प्राप्त करना हो तो लक्ष्य पर नजर रखनी आवश्यक है। अगर अर्जुन यानि भेदक अपने शरीर को स्थिर व संतुलित रखेगा; तो ही जलरुपी तत्व स्थिर रहेगा। भेदक को अपनो सांसों को भी नियंत्रित रखना होगा। सांस अनियंत्रित होते ही शारीरिक व मानसिक संतुलन बिगड जाता है। संतुलन बिगडने के बाद लक्ष्य को भेदना असंभव हो जाता है। मुझे एक और संभावना चिंतित कर रही है। क्या हवा स्थिर व शांत रह सकेगी?
कुमार अहमदाबादी
होरी गीत (प्रिल्युड)
होरी गीत (समूह गीत) विभिन्न छंदो में
(प्रिल्युड)
अपवाहक एवं विद्युल्लेखा छंद में
(पुरुष)गोरी तू चटक मटक, लटक मटक, चटक मटक, करती क्युं री? ओये होये क्युं री?
(स्त्री)पीया तू समझ सनम, चटक मटक, लटक मटक, करती क्युं मैं? ओये होये क्युं मैं?
(पुरुष)तेरा ये बदन अगन, जलन दहन, नयन अगन, लगते क्युं है? ओये होये क्युं है?
(स्त्री)मेरे ये नयन बदन, सनम अगन, जलन दहन, जलती होरी....ओये होये होरी
(स्त्री)चाहे ये सनन पवन, बरफ़ पवन, सनम पवन, बनके आ जा...... ओये होये आ जा
(पुरुष)आया मैं सनन पवन, पवन बरफ, बरफ पवन, बनके गोरी ओये होये होरी.......
आई रे आई होरी
मंगलवार, मार्च 5
परंपरा(अनूदित लेख)
*परंपरा*
लेखिका - एषा दादावाला
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
जामनगर में मेहमानों को एक कतार में बिठाकर अपने हाथ से बुंदी के लड्डु परोसने वाले मुकेश अंबानी को देखकर मन में प्रश्न हुआ। अब कुछ लोग करेंगे?
जो लोग दो पांच करोड की आसामी है। वे शादी ब्याह में विदेशों से शेफ(रसोइया) बुलवाते हैं। दुनिया भर की सुगर फ्री मीठईयों का काउंटर रखकर तरह तरह की शेखियां बघारते हैं। जब की पौने दस लाख करोड(कोई फटाफट बता सकता है। इस रकम में कितने शून्य होंगे? अब सुगर फ्री चोंचले वाले क्या करेंगे?) जिस के पास है। वो धनपति भोजन के लिये पारंपरिक कतार व्यवस्था में आमंत्रितों को भोजन करवा रहा है।
श्रीमंतो को देख देख कर आम आदमी ने भी कतारबद्ध भोजन करवाने की व्यवस्था को छोडकर भारी भरकम बुफे की व्यवस्था अपना ली। जिस में नोर्थ इन्डियन, साउथ इंडियन, थाई, इटैलियन आदि आदि काउंटर सजाये जाते हैं। अब अरब खरबपति मुकेश अंबानी ने फिर से कतारबद्ध बिठाकर भोजन करवाने की रीत को पुर्नजीवित किया है। मेहमानों को अपने हाथों से भोजन परोसने की रीत को फिर शुरू किया है।
अब?
एक समय था। जब भोजन में भारतीय व्यंजनो की बोलबाला थी। हर प्रांत के अपने अपने व्यंजन थे। गुजरात में दाल, लड्डु व आलू की मीठी सब्जी, फूलवडी, लापसी थे। राजस्थान में मोतीपाक सब से उत्तम मीठाई मानी जाती थी। बाद में वो स्थान कतली ने ले लिया। तब घर का लगभग हर व्यक्ति भोजन परोसने में गौरव का अनुभव करता था। बच्चे बूढे स्त्रियां सब मेहमानों को भोजन करवा कर अद्वितीय आनंद प्राप्त करते थे।
फिर आपसी स्पर्धा में कई विसंगतियां आ गयी।
ये मानकर की हमारे पास तो बहुत है; नो गिफ्ट प्लीज एवं एवं ओन्ली ब्लेसिंग्स को बडे बडे अक्षरों में लिखवाने का दौर भी चला। जब की इधर अनंत अंबानी जो की आज अरबों का भावि वारसदार है। उसे गुड़ के साथ सगुन की नोट लेने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।
अब वो वर्ग क्या करेगा। जो दंभ की दुनिया में जीता था।
प्रतिस्पर्धा के जमाने में अपनी हस्ती को बड़ा बताने या साबित करने के प्रयास जारी रखेंगे, या; प्रेम से अपनेपन से बुंदी, मोतीपाक, लापसी को शादी ब्याह में बनवाकर उन के समर्थक होने का प्रमाण देंगे?
*लेखक - एषा दादावाला*
*अनुवादक - कुमार अहमदाबादी*
सोमवार, मार्च 4
भांग और शिवरात्रि व होली(अनूदित लेख)
भांग और शिवरात्रि व होली(अनूदित लेख)
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
ता. 03-03-2024 [रविवार] के गुजरात समाचार की रवि पूर्ति में छपे लेख
(लेखक - भालचंद्र जानी) का अनुवाद
गुजरात समाचार की रविपूर्ति (03-03-2024 के दिन) में भांग के बारे में एक अच्छा लेख छपा ही. लेख हॉटलाइन कॉलम में छपा है. इस कॉलम के लेखक भालचंद्र जानी है. उस का हिंदी अनुवाद कर के दोपहर बाद रखने का प्रयास करुंगा. मूल लेख लम्बा है. दो या तीन हिस्सों में पोस्ट करना पड़ेगा. एक झलक दे देता हूं.
मैंने शंकर का एक रूप निराला देखा
जटा में गंगा, हाथ में भंग का प्याला देखा
जिसे भांग का सेवन करना अच्छा लगता है. वो तो शंकर का नाम जोड़े बिना भी भांग का नशा करता है. लेकिन धर्म को मानने वाले भगवान शंकर का नाम पहले लेते हैं. कहते हैं शिवजी भांग पीकर मस्ती में मस्त रहते थे. तांडव नृत्य करते थे. एसी बातें कर के शिव भक्त मस्ती के लिए भांग का सेवन करते हैं. शिवरात्रि के दिन शंकर के मंदिर में जाकर उन का दर्शन कर के भांग को प्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं. भक्त प्रसाद के रुप में जो भांग लेते हैं. वो छानी हुई होती है.
भांग गुजरात में सरकार द्वारा कानूनन प्रतिबंधित है. इसलिए कोई भी वैध या हकीम एसी कोई दवाई जिस में भांग शामिल हो. किसी अपरिचित दर्दी को देते नहीं हैं. लेकिन ये भी सत्य है. आयुर्वेद में भांग के कई औषधीय गुणों के बारे में वर्णन है. शराब और भांग में एक अंतर ये है की शराब के व्यसनी व्यक्ति को शराब शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक रुप से बहुत हानि पहुंचाती है. जब की भांग का अतिरेक व्यक्ति को बहुत ज्यादा या गंभीर नुकसान नहीं करता. इस के बावजूद भांग का उपयोग करना जरुरी हो तो उस का उपयोग औषधि के रुप में करना चाहिए; व्यसन के रुप में नहीं.
भांग का उपयोग पाचन तंत्र की कार्य क्षमता विकसित करने अच्छे से कार्य करने के उद्देश्य से किया जाता है. पीड़ा के शमन यानि पीड़ा को दबाने के लिए भी किया जाता है. हालांकि औषध के रुप में उपयोग करने से पहले भांग का शुद्धिकरण करना पड़ता है. उस के लिए भांग की पत्तियों को गाय के दूध में उबालने के बाद साफ पानी से धोकर सुखानी चाहिए. सूखी हुई पत्तियों को गाय के घी में सेकने के बाद उन्हें औषधि के रुप में उपयोग में लिया जाता है.
भांग की पत्तियां और बीज दोनों का ही औषधि के रुप में उपयोग होता है. ये दोनों उष्ण होने से वातहर और कफहर है.लेकिन पित्तवर्धक है. वातहर होने के कारण ये पीड़ा का शमन करता है.
धनुर्वात या कुत्ते के काटने से हड़कवा होने से शरीर में खिंचाव आने पर भांग दी जाती है. भांग का धुआं देने से खिंचाव में आराम मिलता है.आराम मिलने से व्यक्ति को नींद आ जाती है. हड़काव के कारण दर्दी अगर उधम मचा रहा हो तो उसे शांत करने के लिए पीड़ा को दबाने के लिए भांग को ज्यादा मात्रा में दिया जाता है. हालांकि इस से हड़काव ठीक नहीं होता. लेकिन व्यक्ति को पीड़ा का पता नहीं चलता.हमारे यहां 99 प्रतिशत लोग सिर्फ महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने के बाद प्रसाद के रुप में ही भांग पीते हैं.
शनिवार, मार्च 2
केसर की क्यारी (रुबाई)
सब से न्यारी है केसर की क्यारी
सब को प्यारी है केसर की क्यारी
ये जीवन भी है बागीचा इस में
हर इक नारी है केसर की क्यारी
कुमार अहमदाबादी
दैवी ताकत(रुबाई)
जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम कुमार अहमदाबादी

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मैं समाज की वाडी हूं। आज मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है या फिर यूं कहें कि आज मैं खुशी से फूली नहीं समा रही हूं; और खुशी से झूम रही हूं। बताती ...
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*दिल जो पखेरु होता पिंजरे में मैं रख लेता* *सिने मैजिक* भाग -०१ *ता.०३-१२-२०१० के दिन गुजरात समाचार में लेखक अजित पोपट द्वारा लिखित* *सिने म...
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*काम कामिनी का दास है* श्री भर्तहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक का भावार्थ पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी नूनमाज्ञाकरस्तस्या: सुभ्रुवो मकरध्...