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शनिवार, नवंबर 10

ध्यान से(ग़ज़ल)

जो कहूँ वो बात सुनना ध्यान से।
बात कहना चाहता हूँ शान से॥

जो न बहके, साथ मेरे तू सनम।
फायदा क्या नैन मदिरा पान से॥

फूल से, माली को डरता देखकर।
आस क्या हो? आज की संतान से ॥

क़त्ल करके आदमी को आदमी।
फिर समाधि स्थल बनाता शान से॥

लूट के सौ आदमी, दे दान फिर।
मूछ देती ताव खुद पर शान से॥

शब्द टेढ़े हैं कटारी धारदार।
लाएँ न बाहर कटारी म्यान से॥

भूल छोटी सी बिगाड़े काम को।
माप ले के चीर फाड़ो थान से॥

फूल पे लाई जवानी वो बाहर।
रूप सारा झांकता परिधान से॥

गम न करना गर कभी जो भूल हो।
गलतियाँ होती यहाँ सुल्तान से॥

बारहा हो राज भटका वो 'कुमार'।
खोजता है रह फिर जी जान से॥
 कुमार अहमदाबादी

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