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सोमवार, नवंबर 12

भाव शून्य

ईन्सां को यहाँ क्युं ढुंढ रहे हो
उस का पता क्युं पूछ रहे हो
रहता नहीं अब ईन्सां यहाँ
भाव शून्य है अब ये जहाँ..ईन्सां

फूल लुटते कुचले जाते
चौराहोँ पे मसले जाते
पानी कम व खून ज्यादा
आज जहाँ के लोग बहाते..ईन्सां

जिम्मेदार ही चोर बनते
राजा उन को छत्र धरते
मिल बाँट के पैसा खाते
बैंक झूठे झूठे खाते..ईन्सां

लक्ष्मी की सब पूजा करते
गृहलक्ष्मी को आग लगाते
दान दहेज की भिक्षा से
घर अपना जो आज सजाते..ईन्साँ

न्यायतुला व थर्मोमीटर
ये भी बनने लगे हैं चीटर
काले कोट का क्या कहना
काला रंग बना है गहना..ईन्साँ

सूनामी या बाढ़ की विपदा
भूकंप जैसी कोई आपदा
सब को अब ये मौका बनाते
मौकों से ये घर भर लेते...ईन्साँ

जिस के सर पे नेता टोपी
नीयत उस की सब से खोटी
ये ही है वो काँटा जिस ने
सच की कर दी बोटी बोटी...ईन्साँ
कुमार अहमदाबादी 

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