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सोमवार, नवंबर 12

जला डाली

मीटता नहीँ इतिहास अग्नि से चाहे।
आपने मेरी सारी चिट्ठियाँ जला डाली॥

गुजरे पलों से यूँ टूटता नहीं रिश्ता।
बामियान में चाहे मूर्तियाँ जला डाली॥

चाँद को सज़ा मिलेगी जरूर मिलेगी।
चाँद ने हमारी रूबाइयाँ जला डाली॥
है गुनाह ये माफी ईस की नहीं होती।
आपने हसीं सुंदर कृतियाँ जला डाली॥

संघर्ष दिलों जां से जिस के लिए किया था।
स्वलहू ने ही देखो हड्डियाँ जला डाली॥

जो सकून के किनारे उतार देती वे।
कट्टरों ने वे सारी कश्तियाँ जला डाली॥

न्याय पालिका सूर्य की रही सदा न्यायी।
दो पलों में अन्यायी शक्तियाँ जला डाली॥
कुमार अहमदाबादी 

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