शब्दों को भावरस में डूबोकर
ग़ज़ल कही पर ताली न मिली
करम किया ईतना महफिल ने
कभी किसी से गाली न मिली
शादी के बंधन में बँध गया पर
छेड़ करे जो वो साली न मिली
भूखा न रखा तकदीर ने चाहे
बत्तीस पकवान की थाली न मिली
पूछे कोई जवाब तैयार थे मगर
हुस्न की अदा सवाली न मिली
रुप ने किया खूब सिंगार पर
चेहरे पे शर्म की लाली न मिली
रेगिस्तान में भटकता रहा मगर
प्यार की एक भी प्याली न मिली
बारहा 'कुमार' ने पुकारा मौत को
पर कभी कोई चिता खाली न मिली
ग़ज़ल कही पर ताली न मिली
करम किया ईतना महफिल ने
कभी किसी से गाली न मिली
शादी के बंधन में बँध गया पर
छेड़ करे जो वो साली न मिली
भूखा न रखा तकदीर ने चाहे
बत्तीस पकवान की थाली न मिली
पूछे कोई जवाब तैयार थे मगर
हुस्न की अदा सवाली न मिली
रुप ने किया खूब सिंगार पर
चेहरे पे शर्म की लाली न मिली
रेगिस्तान में भटकता रहा मगर
प्यार की एक भी प्याली न मिली
बारहा 'कुमार' ने पुकारा मौत को
पर कभी कोई चिता खाली न मिली
कुमार अहमदाबादी
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