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शनिवार, नवंबर 10

कंक्रीट के पहाड़

आज कल कंक्रीट के पहाड़ों में रहते हैं
सुनिए सब हम कैसा जीवन जीते हैं

दो रोटी के लिए जानवर सा भटकते हैं
चैन की दो साँस को हमेशा तरसते हैं

जब भी दो कदम तरक्की करते हैं
पडोशी की आंख में हमेशा खटकते हैं

तन्हाई में तो शेर बन के गरजते हैं
मज़बूरी के सामने कत्थक करते हैं

सिंहासन-क्रांति के मौके तो मिलते है
पर चुनाव से चाणक्य कहाँ पैदा होते हैं?

कहे कुमार सुनो ये जीवन के रास्ते हैं
यहाँ जीवन नहीं, मौत के दाम सस्ते हैं
 कुमार अहमदाबादी

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