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गुरुवार, नवंबर 8

उपवन का डर

खाद नहीं खून से सींचा, रिश्ता क्या वो अब टूटेगा?
नए रिश्ते में बँधने से क्या? साथी मेरा अब छुटेगा!!!

साथ जिस का पाकर मैंने, जिंदगी के रस को जाना।
जीवनभर के साथ का; वादा क्या वो अब टूटेगा?

नभ से तारे टूटेंगे व चाँद भी गुम हो जाएगा।
सूरज भी तब बुझ जाएगा; चाँद मेरा जब रुठेगा॥

माना वो भी लाठी है, गुलशन के दो माली की।
फ़र्ज़ अपना वो निभाएँ; हक मेरा ना पर छुटेगा॥

डर डर के ये सोचती हूँ, हाँ कहूँ या ना कहूँ मैं।
बाग अपना तू खिला पर; 'उपवन' से क्या तू रुठेगा?

जिंदगी की जं..ग में, हर पल जिस ने साथ दिया।
खास मोर्..चे पे आके, साथ क्या वो अब छुटेगा?

चाहे जो भी हो ए दोस्त; वादा मेरा तुज से है:
मनमंदिर में तू ही रहेगा, साथ तो तन का छुटेगा॥

जब जरुरत हो मेरी तू: याद मुज को कर लेना।
आउँगी मैं बन के हवा; जग सारा पीछे छुटेगा॥
कुमार अहमदाबादी 

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