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गुरुवार, नवंबर 8

मंथन

(1) सागर मंथन मोती देता
मंथन मन का विचार
(2) मंथन ईतना काहे करना
जीना जब दिन चार
(1)धरा का मंथन धान देता
मंथन नभ का विहार
(2) मंथन चाहे जितना कर लो
बस में नहीं कुछ यार

(1)भाव मंथन कविता देता
मंथन कला सिंगार
(2)मंथन में जो डूब जाता
कभी न पाता करार

(1)मंथन पल का सदियाँ देता
मंथन घर की बहार
मंथन जीवन चिंतन है
मंथन से ना बचना यार

(2) सागर मंथन विष भी देता
मंथन बस में रखना यार
मंथन चिंतन हो न हो पर
होती नैया गंगा पार
कुमार अमदावादी
दो पात्रों के बीच की चर्चा को काव्य रुप देने का प्रयास किया है।

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