करती हो तुम नखरा भी नखरे से
बालों को सजाती हो सनम गजरे से
आंखों को धारदार करती हो तुम
दीपक की लौ से निर्मित कजरे से
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
करती हो तुम नखरा भी नखरे से
बालों को सजाती हो सनम गजरे से
आंखों को धारदार करती हो तुम
दीपक की लौ से निर्मित कजरे से
कुमार अहमदाबादी
यार खाली मत रखा कर
जाम को पूरा भरा कर
ये बताने के लिये की
ये है कैसी तू चखा कर
दोस्तों का मान रख यूं
दोस्तों को मत मना कर
जाम पूरा खत्म करना
यार रखना मत बचा कर
भाग्य की देवी स्वयं ये
जाम लायी है सजा कर
जाम अच्छे से बना यार
दोस्तों से मत दगा कर
कुंदन का श्रेष्ठ कर्म है ये जडतर
जडिये का प्यार धर्म है ये जडतर
ये मामूली कला नहीं है प्यारे
अत्यंत ही सूक्ष्म कर्म है ये जडतर
कुमार अहमदाबादी
साधक हो साधना करो जीवन भर
प्रार्थी हो प्रार्थना करो जीवन भर
याचक बनकर आए हो मंदिर में
मनचाही याचना करो जीवन भर
कुमार अहमदाबादी
मेरे जैसे ही इस दीवाने से
बातें करता हूँ मैं पैमाने से
बातें तो फ़ालतू की होती है पर
दोनों को बांधती है याराने से
कुमार अहमदाबादी
दो बोतल जाम और थोडी नमकीन
साथी हों चंद सोमरस के शौक़ीन
मस्ती का दौर फिर चले एसे की
सांसें भी अंत तक हो जाए रंगीन
कुमार अहमदाबादी
*भारतीय संस्कृति में गुरु की महिमा*
अनुवादक व लेखक - महेश सोनी
*प्रस्तुत लेख का ज्यादातर हिस्सा अनुवादित है। जो* *आज(18-07-2024)के गुजरात समाचार की धर्मलोक आवृत्ति पृष्ठ नं.4* *पर छपे लेख का है; थोडा बहुत मैंने लिखा है।*
२१ जुलाई आषाढ़ सुद विक्रम संवत २०८१ के दिन यानि दो दिन बाद गुरु पूर्णिमा है। सनातन भारतीय संस्कृति में इस दिन का सांस्कृतिक व एतिहासिक महत्व है।
महर्षि वेद व्यास ने ज्ञान के प्रकाश को दसों दिशाओं में फैलाने का कार्य किया था। उन्होंने लोगों के मन में बसे अज्ञान रुपी अंधेरे को सदज्ञान का प्रकाश फैलाकर दूर किया था।
गुरु के सानिध्य से जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल जाते हैं। गुरु की कृपा और शिष्य का समर्पण दोनो का समन्वय हो जाए तो शिष्य का संपूर्ण जीवन रुपांतरित हो जाता है। सद्गुरु शिष्य को प्रेम सीखाता है; अहंकार को दूर कर के निराकार परमात्मा के मार्ग पर ले जाता है। सद्गुरु परमात्मा को प्राप्त करने का एक द्वार है। सनातन संस्कृति मे गुरु शिष्य के संबंध को दिव्य माना गया है।
गुरु का सानिध्य पत्थर दिल और जड़ शिष्य को भी पारस बना देता है। हमारे समाज की बात करें तो हमारे समाज में गुरु का आशिर्वाद शिष्य को कुशल, उत्कृष्ट कलाकार( मेरा मानना है कि हम यानि सुनार कलाकार हैं, कारीगर नहीं) बनाता है।
गुरु प्रकाश का वो स्तंभ है। जिस से दूर दूर तक रोशनी फैलती है। गुरु की महिमा अनंत है। गुरु की महिमा को संत कबीर ने लाजवाब शब्दों
*तीरथ नहाये एक फल, संत मिले फल चार*
*सद्गुरु मिले फल अनंत, कहते कबीर विचार*
में पेश किया है।
शास्त्रों में माता पिता को प्रथम गुरु रहा गया है। उन के बाद शिक्षक को महत्व दिया गया है। जो शिष्य को आर्थिक, भौतिक प्रगति का मार्ग दिखाता है। उन के बाद का स्थान आध्यात्मिक गुरु को प्राप्त हैं। जो शिष्य को जीवन मृत्यु के बंधन से मुक्त कर परमानंद द्वारा इश्वर को प्राप्त करने मार्ग बताता है। सद्गुरु मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग को दिखाता है।
प्रस्तुत लेख का ज्यादातर हिस्सा अनुवादित है। जो आज (18-07-2024) के गुजरात समाचार की धर्मलोक आवृत्ति पृष्ठ नं.4 पर छपे लेख का है। कुछ मैंने लिखा है।
कहता है मन की आरज़ू मस्ताना
पूरी करनी है आप को ए जाना
मरने के बाद देह को पानी नहीं
मेरी प्यारी शराब से नहलाना
कुमार अहमदाबादी
मेरी प्यारी मय लेकर आ रानी
पर लाना मत पानी ए दीवानी
नखरों को घोल कर तू धीरे धीरे
मुझ को पीला मय मेरी मनमानी
कुमार अहमदाबादी
मेरे जैसे ही इक दीवाने से
बातें करता हूँ मैं पैमाने से
बातें तो फ़ालतू की होती है पर
दोनों को बांधती है याराने से
कुमार अहमदाबादी
हर घड़ी ये इक नया आयाम है
ज़िंदगी ज़िंदादिली का नाम है
ज़िंदगी भर भागता ही मैं रहा
अब चिता पर लेटकर आराम है
ज़िंदगी है योग ही है ज़िंदगी
आ रही हर सांस प्राणायाम है
पास बैठे फूल ने हंसकर कहा
फूल जैसी खूबसूरत शाम है
संगिनी के साथ मिल जुलकर रहो
तीर्थ है वो वो ही यात्राधाम है
ज़िंदगी का सत्य लिखता है ‘कुमार’
ज़िंदगी पूरी सतत व्यायाम है
शारदा का हाथ तुझ पर है ‘कुमार’
उस के कारण ही जरा सा नाम है
कुमार अहमदाबादी
पाबंद अगरचे अपनी ख़्वाहिश के रहो
लायल सब्जेक्ट तुम ब्रिटिश के रहो
कानून से फायदा उठाना है अगर
हामी न किसी ख़राब साजिश के रहो
अकबर इलाहाबादी
भावार्थ लेखक - कुमार अहमदाबादी
शायर अकबर इलाहाबादी ने इस रुबाई में सांकेतिक रुप से वर्ग विशेष को दो मुद्दे कहे हैं। एक में अपने लक्ष्य पर नजर केन्द्रित रखने की सलाह दी है। यहां एक बात याद दिलाना चाहता हूँ। अकबर इलाहाबादी और उन के जैसे कई व्यक्ति सर सैयद की ब्रिटिशरों से सहयोग कर के लाभ लेने की नीति से बहुत प्रभावित थे। संभवतः इसीलिए शायर ने दूसरे मुद्दे में ब्रिटिशरों से वफादारी करने की सलाह दी है; साथ ही साथ ये चेतावनी भी दी है कि कानून से फायदा उठाना है, लाभ लेना है तो किसी भी खराब साज़िश के हामी यानि मत होना। लगता है शायर स्वतंत्रता के आंदोलन को अंग्रेजों के विरुद्ध साज़िश समझते थे।
अब इन सब मुद्दों को उस समय के राजकीय वातावरण के परिप्रेक्ष्य में देखते समझते हैं।
अकबर इलाहाबादी ने अपनी जवानी के शिखर पर ब्रिटिश साम्राज्य की बुलंदी देखी थी। उस समय भारत का एक वर्ग अंग्रेजों से वफादार था। वो अंग्रेजों को खुश कर के उन से जो भी लाभ मिल सके। उसे लेने की रणनीति पर अमल कर रहा था।
लेकिन अंग्रेजों से यानि कानून से लाभ उसी परिस्थिति में मिल सकता था। जब उन से सहयोग की नीति अपनाई जाये। उन के विरुद्ध कोई षड्यंत्र ना रचा जाए ना ही एसे किसी षड्यंत्र में हिस्सा लिया जाए। जिस से अंग्रेजों को किसी प्रकार का कोई नुक्सान हो।एसा करने वाले दोनों हाथों में लड्डू लेकर बैठे थे।
अंग्रेजों के विरुद्ध षड्यंत्र ( जो हमारे दृष्टिकोण से षड्यंत्र ना होकर स्वतंत्रता का आंदोलन था ) सफल होने पर अंग्रेजों से अच्छे संबंध रखने वालों को भी स्वतंत्रता मिलती। लेकिन षड्यंत्र निष्फल होने पर उन्हें किसी प्रकार का नुक्सान नहीं होता; क्यों कि वे कानून के विरुद्ध किये जाने वाले षड्यंत्र यानि स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यक्रमों में शामिल नहीं होते थे।
इतने विष्लेषण के बाद आप खुद समझ जाइये। एक शायर की कलम की ताकत क्या होती है। वो निशाना कहां लगाता है और तीर क
हां मारता है।
*क्या भारत यूरोप का गोदाम था*
भावार्थ लेखक - कुमार अहमदाबादी
रुबाई का भावार्थ समझने से पहले कवि अकबर इलाहाबादी के जीवनकाल के बारे में थोडी सी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। अकबर इलाहाबादी का जन्म १६ नवंबर १८४६ के दिन हुआ था। अवसान १५ फरवरी १९२१ के दिन हुआ था।बालपन में उन्हों ने मुगल साम्राज्य का अंत और अंग्रेजी राज्य का आरंभ देखा। आयु बढ़ने के साथ साथ अंग्रेजी राज्य के चढते सूरज को देखा। जब अवसान हुआ तब भारत में अंग्रेजी राज का सूरज पूरी तरह तप रहा था। इस पृष्ठभूमि को दिमाग में रखकर इस रुबाई को समझने का प्रयास कीजिएगा।
ये बात गलत कि दार-उल-इस्लाम है हिन्द
ये झूठ कि कि मुल्क-ए-लछमन-ओ-राम है हिन्द
हम सब हैं मुती-ओ-खै़र-ख़्वाह-ए-इंग्लिश
यूरोप के लिये बस एक गोदाम है हिन्द
अकबर इलाहाबादी
इस रुबाई में कवि अकबर इलाहाबादी ने भारत को यूरोप का गोदाम कहा है। गोदाम वो होता है जहां नव उत्पादित माल रखा जाता है। शायर ने उस समय खंड में भारत में बढ रहे यूरोपीकरण का मुद्दा व्यक्त किया है। उस समय भारत में अंग्रेजों के साथ साथ कहीं कहीं पोर्टुगीज व फ्रेन्च भी सत्ताधीश थे। उधर यूरोप में औद्योगिक क्रांति के कारण उत्पादन बढ़ गया था।
लगभग सारे यूरोपीयन अपने देश के उत्पादनों को भारत में बेचते थे। भारत में यूरोप में उत्पादित माल के साथ साथ वहां की संस्कृति भी प्रवेश कर रही थी।
भारत में अंग्रेजों की संस्कृति के प्रवेश व असर को वी. शांताराम ने अपनी मूवी नवरंग के आरंभिक दृश्यों में बहुत कुशलता से बताया है। नवरंग के उस दृश्यों में से एक में दो व्यक्ति भारतीय वेशभूषा यानि धोती कुर्ता पहने हुए वस्त्रों की दुकान में जाते हैं। वे जब वापस निकलते हैं; तब टाई सूट व पैंट पहनकर निकलते हैं।
कुल मिलाकर यूरोप द्वारा अपने अच्छे बुरे उत्पादनों के साथ अपनी संस्कृति से भारत के जनमानस को प्रभावित करने के घटना क्रम को कवि अकबर इलाहाबादी ने बेहद खूबसूरती से सिर्फ चार पंक्तियों में व्यक्त कर दिया है।
कुमार अहमदाबादी
ककहरा मुझ को पढाएं मास्टर जी
व्याकरण क्या है बताएं मास्टर जी
मुझ को गिनती करनी है लाखों की कल आज
एक से सौ तक सिखाएं मास्टर जी
कुमार अहमदाबादी
आओ आ जाओ अब दुल्हन बनकर
महका दो जीवन को चंदन बनकर
मानो सजनी पुकार प्रेमी दिल की
सांसों को धडका दो जीवन बनकर
कुमार अहमदाबादी
गालों को भीगना है मत रोक मुझे
छालों को फूटना है मत रोक मुझे
सूखे सूखे आंसूओं को यारा
प्यालों में डूबना है मत रोक मुझे
कुमार अहमदाबादी
गर रुठ जाऊं मुझे मनाती है वो
नखरे कर के सदा सताती है वो
बस इतनी सी है आपबीती मेरी
नर्तक सा प्यार से नचाती है वो
कुमार अहमदाबादी
तब आंख कटीली हो ही जाती है
औ’ चाल नशीली हो ही जाती है
जब आती है मदमस्त जवानी यारों
हर सांस रसीली हो ही जाती है
कुमार अहमदाबादी
गम के प्यालों को पीना है मुश्किल
गहरे घावों को सीना है मुश्किल
प्यालों को पीकर घावों को सीकर
भी लंबा जीवन जीना है मुश्किल
कुमार अहमदाबादी
मौका दे दो कभी तो कुछ कहने का
इक अवसर चाहिये कमर कसने का
सच सच कहना मुझे ए साजन आखिर
क्यों नहीं देते तुम मौका लड़ने का
*कुमार अहमदाबादी*
क्यों लूं उन से कुछ भी अब डर डर कर
जो चाहूं ले सकती हूं लड़ लड़ कर
पर वो मौका कहां मुझे देते हैं
जो चाहूं दे देते हैं हंँस हँस कर
*कुमार अहमदाबादी*
जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम कुमार अहमदाबादी