नैनों में नृत्य कर रही इच्छाएं
सावन में गुनगुना रही आशाएं
अलबेले बादल से कह रही है तुम
समझो प्यासी घटा की आकांक्षाएं
कुमार अहमदाबादी
साहित्य की अपनी एक अलग दुनिया होती है। जहां जीवन की खट्टी मीठी तीखी फीकी सारी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर पेश किया जाता है। भावनाओं को सुंदर मनमोहक मन लुभावन शब्दों में पिरोकर पेश करने के लिये लेखक के पास कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। दूसरी तरफ रचना पढ़कर उस का रसास्वादन करने के लिये पाठक के पास भी कल्पना शक्ति होनी जरुरी है। इसीलिये मैंने ब्लॉग का नाम कल्पना लोक रखा है।
नैनों में नृत्य कर रही इच्छाएं
सावन में गुनगुना रही आशाएं
अलबेले बादल से कह रही है तुम
समझो प्यासी घटा की आकांक्षाएं
कुमार अहमदाबादी
सब करते हैं इस का मन से आदर
पत्नी भरती है गागर में सागर
भोली है लेकिन है समझदार कुशल
अवसर अनुसार है बिछाती चादर
कुमार अहमदाबादी
दो तीन वर्ष पहले बीकानेर स्वर्णकार समाज के बीकानेर एवं अहमदाबाद के लोगों में एक पैरोडी गीत ‘होळी आई मस्तानी आजा’ बहुत लोकप्रिय हुआ था एवं आज भी लोकप्रिय है।
पैरोडी गीत उसे कहा जाता है। जो किसी गीत की धुन पर लिखा जाता व गाया जाता है।
होळी आई मस्तानी आजा गीत १९५४ में पेश हुयी। सुपर हीट म्यूजिकल मूवी नागिन के गीत मेरा दिल ये पुकारे आजा की धुन पर गाया गया था।
१९५४ में पेश हुई नागिन के लगभग सब गीतों ने धूम मचाई थी। ये मेरा दिल ये पुकारे आजा भी सुपर हीट था। इस गीत को राजेन्द्र कृष्ण ने लिखा था और हेमंत कुमार ने स्वरबद्ध किया था।
इस गीत को याद करते ही राग किरवाणी याद आता है। किर मूल संस्कृत शब्द है। कीर यानि शुक अर्थात तोता, पोपट। कहा जाता है इस राग की सरगम (वाणी - आवाज) पोपट की वाणी सी मधुर लगती है।
उत्तर भारत के संगीत में एसे राग बहुत कम नहीं के समान ही है। गांधार और धैवत दोनों कोमल स्वर हों। ये राग दक्षिण भारत का है। जो अदभुत करुण रस प्रधान राग है। हिंदी फिल्मों में इस राग पर आधारित सृजित गीतों में ९९ प्रतिशत गीत करुण रस प्रधान है। एक उदाहरण तो आप को नागिन के गीत का दे दिया है।
एसा लगता है; धीमी गति के आठ मात्रा के कहरवा ताल मे लता मंगेश्कर ने इस गीत को गाते समय दिल निचोड़कर रख दिया है।
पहले अंतरे के शब्द हैं, तू नहीं तो ये ऋत ये हवा क्या करु, क्या करुं, दूर तुझ से मैं रह के बता क्या करुं, क्या करुं...।
दूसरे अंतरे के शब्द हैं, आंधियां वो चली आशियां लुट गया..लुट गया। गीत का फिल्मांकर भी अलौकिक है। एसा है जैसे सोेने में सुगंध मिल गयी। आप ये गीत कभी मेघ छायी रात को या भोर होने से एक दो घंटे पहले की नीरव शांति में ये गीत सुनियेगा। आप के रोएं खड़े हो जाएंगे; हृदय में हलचल मच जाएगी। एसा होने का कारण इस राग में बसा विषाद है। इस में बसा विषाद इस के प्रत्येक स्वर को हृदयस्पर्शी बनाता है।
ता.२६-११-२०१० के दिन गुजरात समाचार की लेखक अजित पोपट द्वारा लिखित कॉलम सिने मैजिक में छपे लेख का संक्षेपानुवाद
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
सिने मैजिक
इक हवा का झोंका आया, टूटा डाली से फूल, ना चमन की ना पवन की, किस की है ये भूल, खो गयी खुशबू हवा में कुछ ना रह गया...जो लिखा था, आंसूओं के संग पर गया.... फिल्म कोरा कागज के इस गीत के संगीत निर्देशक संगीतकार कल्याणजी आनंदजी थे। राग झिंझोटी पर आधारित इस गीत के स्वरों को सात मात्रा के रूपक ताल में बांधा गया था। इस गीत में गायक किशोर कुमार ने एसी पीडा भरी है। एकांत में सुनने वाले की आंखें अक्सर नम हो जाती है।
दूसरी तरफ संगीतकारों ने इस गंभीर माने जाने वाले राग में हल्के फुल्के रोमांटिक गीत भी बनाये हैं। फिल्म चिराग में नायक द्वारा अपनी नायिका की कल्पना के भाव को मदन मोहन ने जिस गीत में व्यक्त किया है। उस का मुखड़ा तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है... क्या लाजवाब है। इस गीत मे आगे शब्दों का कमाल देखिए ‘ये उठे सुबह चले, ये झुके शाम ढले, मेरा जीना मरना इन्हीं आंखों के तले’। आगे के अंतरे के शब्द पर गौर कीजिए ‘इन में मेरे आने वाले जमाने की तस्वीर है...’ चाहत के काजल से लिखी हुयी तकदीर है, ये उठे सुबह चले, ये झुके शाम ढले.. ये मदन मोहन द्वारा स्वरबद्ध शास्त्रीय गीतों में अपना एक अलग ही स्थान रखता है।
ता.17-12-2010 के दिन अजित पोपट द्वारा गुजरात समाचार में लिखित कॉलम सिने मैजिक में छपे लेख का आंशिक अनुवाद
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
१९५८ में रिलीज हुयी मूवी छोटी बहन का ये गीत "बन के टूटे यहां आरज़ू के महल, ये जमीं आसमां भी गये हैं बदल, कहती है जिंदगी इस जहां से निकल... जाऊं कहां बता ए दिल, दुनिया बडी है संगदिल, चांदनी आयी घर जलाने, सूझे न कोई मंजिल" संगीत के शौकीनों का लाडला गीत है।
संगीतकार जोडी शंकर जयकिशन ने इस गीत को भारतीय राग मंजूषा के भंडार में से एक राग झिंझोटी में स्वरबद्ध किया है। अंतरे के शब्दों से जिस तरह गीत आगे बढता है, उस पर गौर करने से मालूम होता है। गीत के स्वरों को एसे गूंथा है कि सुनने वाला दोनों यानि बनने और बिगड़ने के भाव महसूस करता है। गीत सुनने में इतना खो जाता है। ये पता ही नहीं चलता की आठ मात्रा के कहरवा ताल में पिरोया ये गीत कब पूरा हो गया। एक राग दरबारी कानडा की बात की तब बताया था। कुछ राग व रागिनी एसे हैं कि संगीत की थोडी सी समझ या जानकारी रखने वालों रस के सागर में डुबो देते हैं। खुशी का गीत हो तो श्रोता झूमने लगता है और दर्द भरा गीत हो तो गमगीन हो जाता है, कभी कभी रोने भी लगता है।
शास्त्र की परिभाषा में ये एक संपूर्ण राग है। अर्थात इस में सरगम के मूल सातों स्वर सा रे गा म प ध नी सां है। अवरोह में निषाद का स्वरुप कोमल हो जाता है। हमारे संगीतकारों ने संगीत के शौकीनों को सात स्वरों के सागर में से एसे एसे गीत मोती निकाले हैं कि मन सोचता है। किन शब्दों में प्रशंसा करुं!
किशोर कुमार जितनी स्वाभाविक तरीके से हास्य रस बिखेरते थे। उतनी ही स्वाभाविकता से दर्द भरे गीत भी गाते थे।
एसे कुछ गीतों का उल्लेख करता हूं।
आप को गीत "कोई हमदम ना रहा, कोई सहारा ना रहा" अवश्य याद होगा। उस मूवी में किशोर कुमार ने हास्यरस और करुण रस दोनों का प्रदर्शन किया था। इस गीत की आरंभिक धुन एवं मुकेश के जिस गीत का आलेख की शुरुआत है। दोनों को गुनगुनाइये। आप को राग झिंझोटी में व्यक्त हुयी वेदना का अहसास अवश्य होगा। गीत के अंतरे के लिखे गये। शब्दों 'शाम तन्हाई की है, आयेगी मंजिल कैसे, जो मुझे राह दिखाए वही तारा ना रहा.....कोई हमदम ना रहा... में व्यक्त दर्द देखिये। झूमरु एवं छोटी बहन दोनों फिल्मों के इन गीतों की लय लगभग समान है। झूमरु का संगीत स्वयं किशोर कुमार ने दिया था।
इसी राग पर आधारित एक और गीत १९७४ में प्रदर्शित एन एन सिप्पी की अशोक रॉय निर्देशित फिल्म चोर मचाए शोर में है। उस गीत के शब्द घुंघरु की तरह बजता ही रहा हूं मैं है। ये गीत छह मात्रा के दादरा ताल में स्वरबद्ध किया गया था।
गुजरात समाचार की अजित पोपट द्वारा लिखित कॉलम सिने मैजिक में ता.१०-१२-२०१० के दिन प्रकाशित लेख का आंशिक अनुवाद
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
दिल जो पखेरु होता पिंजरे में मैं रख लेता
सिने मैजिक
भाग - ०२
पुकारता चला हूं मैं गीत में गिटार और मेन्डोलीन का लचीला उपयोग हुआ है।
राग किरवाणी पर वापस लौटते हैं। १९७१ में किशोर कुमार ने आत्मकथा सरीखी दूर का राही नाम की मूवी बनाई थी। उस में एक गीत सुलक्षणा पंडित और किशोर कुमार की आवाजों में था। उस गीत के बोल *बेकरार दिल तू गाये जा, खुशियों से भरे वो तराने, जिन्हें सुन के दुनिया झूम उठे.....*इस गीत के शब्द प्रत्यक्ष तो आनंद व्यक्त करने का कह रहे थे। लेकिन तर्ज में गमगीनी थी। एसा ही एक प्रयोग राज कपूर की मूवी राम तेरी गंगा मैली के लिये गीतकार संगीतकार रविन्द्र जैन ने किया था। इस राधा मीरा, दोनों ने श्याम को चाहा, अंतर क्या दोनों की चाह में बोलो, इस प्रेम दीवानी इक दरश दीवानी... गीत में उपर के स्तर पर भक्ति का भाव नजर आता है। लेकिन गहरे उतरने पर विरह का भाव नजर आता है।
छोटा सा एक एक अन्य मुद्दा
शास्त्रीय संगीत के उपासक इस राग को ज्यादा गाते नहीं है। इसे वाद्य संगीत के लिये ज्यादा उपयुक्त मानते हैं। इस में भी एक अपवाद है। पंडित रविशंकर द्वारा रचित एक बंदिश *नटनागरा सुंदरा....* को ठुमरी गायिका श्रीमती लक्ष्मी शंकर गाती हैं।
ता.०३-१२-२०२४ के दिन गुजरात समाचार में अजित पोपट द्वारा लिखित कॉलम सिने मैजिक में छपे लेख का आंशिक अनुवाद
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
*दिल जो पखेरु होता पिंजरे में मैं रख लेता*
*सिने मैजिक*
भाग -०१
*ता.०३-१२-२०१० के दिन गुजरात समाचार में लेखक अजित पोपट द्वारा लिखित* *सिने मैजिक कॉलम का अंशानुवाद*
व्यक्ति जिसे भरपूर प्यार करता हो। उस की अन्यत्र कहीं शादी हो जाए। वो खुद डाक्टर बन जाए। उस के बाद जीवन में एसा मोड आए की वो बीमारी से घिरे अपने पति को लेकर चिकित्सा के लिये आ जाए। उस समय डॉक्टर गहन दुविधा में फंस जाता है। अगर वो रोगी को बचा ना सके तो भूतपूर्व प्रेमिका को ये लग सकता है कि बेवफाई का बदला लेने के लिये जान बूझकर मेरे सुहाग को नहीं बचाया। दूसरी तरफ बचाने के लिये असंभव को संभव कर के दिखाने का कार्य करने का बीडा उठाना होगा।
इस पृष्ठभूमि में डाक्टर के मन की वेदना को गीत में व्यक्त करता है। वो यादगार गीत है *याद न जाए बीते दिनों की.... जाके न आए जो दिन, दिल क्युं बुलाए, उन्हें दिल क्युं बुलाए* गीत के अंतरे में शब्द हैं *दिल जो पखेरु होता पिंजरे में मैं रख लेता, पालता उस को जतन से मोती के दाने देता, सीने से रहता लगाए...* संगीत के अभ्यासी इस गीत को राग किरवाणी का श्रेष्ठ उदाहरण मानते हैं।
उपरोक्त गीत १९६३ में परदे पर आयी निर्देशक श्रीधर की मूवी दिल एक मंदिर
का है। ये गीत राग किरवाणी में बनी उत्तम रचना है। सुरों के सम्राट मोहम्मद रफी द्वारा गाए गए एवं राजेन्द्र कुमार पर फिल्माए गए। मनोवेदना से भरपूर इस गीत को शंकर जयकिशन ने सुरों से सजाया था।
मैहर घराने के उस्ताद स्व. अली अकबर खां साहब इस राग को कर्णाटकी संगीत से लाये थे। व्यथित दिल की वेदना को व्यक्त करने वाला इसी एक और इसी राग पर आधारित गीत अनामिका मूवी में है। अनामिका के गीत *मेरी भीगी भीगी सी पलकों पे रह गये, जैसे मेरे सपने बिखर के..* को आर.डी. बर्मन ने स्वरबद्ध किया था। इस गीत के सरल शब्दों में वर्णित वेदना कलेजे को चीर देती है।
राग किरवाणी पर आधारित कुछ अन्य गीत हैं.. १९५९ में प्रदर्शित देव आनंद और माला सिन्हा की मूवी लव मैरिज का चंचल गीत *कहे झूम झूम रात ये सुहानी* पंजाबी लयकारी के बादशाह ओ.पी.नैयर इस रागाधारित चंचलता और शोखी से भरपूर गीत दिये हैं।
१९६२ में प्रदर्शित राज खोसला की एक मुसाफिर एक हसीना मूवी का *मैं प्यार का राही हूं, तेरी जुल्फ के साए में सरीखे यादगार गीतों का सृजन किया है। एक अन्य *आंखों से जो उतरी है दिल में, तसवीर है इक अनजाने की, खुद ढूंढ रही है शम्मा जिसे क्या बात है उस परवाने की...* गीत भी कमाल का है। एसा हो नहीं सकता की ओ.पी.नैयर के संगीत की बात हो और घुडताल (घुडताल यानि घोडे के चाल वाली या टापों वाली ताल) का उल्लेख न हो। नसीर हुसैन की मूवी फिर वही दिल लाया हूं का शिर्षक गीत इस राग किरवाणी पर आधारित था। ओ.पी.नैयर साहब ने १९६५-६६ में प्रदर्शित विश्वजीत और मुमताज के अभिनय से सजी मेरे सनम मूवी में (जहां तक मुझे मालूम है। हिन्दी या उर्दू गुलबंकी छंद ( {मात्रा व्यवस्था लगा लगा लगा} ) में लिखे गये इस पुकारता चला हूं मैं, गली गली बहार की, बस एक(बसेक उच्चारण द्वारा छंद निभाया गया है) गीत को मोहम्मद रफी साहब ने पूरी मस्ती से गाया है। छंद, धुन वगैरह जितने बेमिसाल है। उतने ही बेमिसाल तरीके से रफी साहब ने गाया है।
१९६१ में किशोर कुमार ने दूर का राही मूवी बनाई थी।
*अंशानुवाद जारी है*
तिथियां कभी टूटती है और कभी दो होती है, क्यों?
अनुवादक - महेश सोनी
आप को आश्चर्य होगा। एक ही दिन में दो तिथि कैसे होती है। अंग्रेजी कैलेंडर में तारीख व्यवस्था है। जब की भारतीय व्यवस्था पंचांग व्यवस्था है। तिथि व्यवस्था चंद्र की गति पर आधारित है। एकम से अमावस तक चंद्र पृथ्वी की एक प्रदक्षिणा (यानि एक चक्कर, एक राउंड) करता है। एक प्रदक्षिणा अर्थात ३६०(360) डिग्री का एक पूरा चक्कर होता है। चंद्र की प्रदक्षिणा के साथ पृथ्वी अपनी धुरी पर सूर्य की प्रदक्षिणा करती है; इसलिये चंद्र कभी कभी पृथ्वी गोलाकार के १२(12)अंशों से कुछ ही घंटों में गुजर जाती है। इसलिये महीने के ३०(30) दिनों का मेल बिठाने के लिये उस तिथि को रद कर दिया जाता है। जिसे ज्योतिष की भाषा में तिथि का क्षय होना कहा व आम बोलचाल की भाषा में तिथि का टूटना कहा जाता है। दूसरी ओर कभी कभी चंद्र को पृथ्वी के बारह अंशो से गुजरने में एक दिन से ज्यादा समय लगता है। एसे मामले में पंचांग में एक अतिरिक्त तिथि जोडी जाती है। जिस से कभी कभी कोई तिथि दो हो जाती है। इसी तरह वर्ष के ३६५(365) दिनों का सामंजस्य करने के लिये अधिक मास जोडा जाता है।
ता.17-08-2024( १७-०८-२०२४, शनिवार) के गुजरात समाचार की जगमग पूर्ति मध्य पृष्ठ (4-5) पर छपे लेख का अनुवाद (लेखक का नाम छपा नहीं है)
मैं समाज की वाडी हूं। आज मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है या फिर यूं कहें कि आज मैं खुशी से फूली नहीं समा रही हूं; और खुशी से झूम रही हूं।
बताती हूं कारण बताती हूं। जरा धीरज रखिए; कारण बताती हूं।
आज मेरे बच्चे मेरे फूलों जैसे बच्चे मेरे आंगन में खेल कूद रहे हैं।
आज मेरे आंगन में भारत का 78 वां स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। हर साल की तरह इस वर्ष भी श्री बीकानेर ब्राह्मण स्वर्णकार समाज, अहमदाबाद की कार्यकारिणी द्वारा पारंपरिक
तरीके से यानि धूमधाम से मेरे आंगन में स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा है।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष सुबह ध्वजारोहण करने के बाद बच्चों के लिये खेल कूद की प्रतियोगिताएं शुरु हुयी। खेल कूद प्रतियोगिताएं पूरी होने के बाद शिक्षा के प्रति बच्चों की रुचि और गहरी करने के लिये उन्हें शाम को पुरस्कृत किया जाएगा।
मैं लगभग दो तीन बजे के आसपास ये लिख रही हूं। कौन सी एसी मां होगी। जो अपने बच्चों को अपने घर के आंगन में खेलते कूदते देखकर खुश नहीं होगी। उसी खुशी को आप सब के साथ बांट रही हूं।
मैं अपनी कलम को इस आशा व विश्वास के साथ विराम देती हूं। इन्हीं बच्चों में से कल कोई बडा व्यापारी बनेगा तो कोई ऊंचे दरज्जे का कारीगर बनेगा। कोई वैज्ञानिक बनेगा तो कोई उद्योगपति बनेगा। कोई बड़े शो-रुम का मालिक बनेगा। कोई मेरी कल्पना के बाहर के क्षेत्र में नाम और दाम कमाएगा।
मेरी भावनाएं तो अनंत है। सब को तो कलम लिख भी नहीं सकती। लेकिन कलम को तो अब विराम देना पड़ेगा।
तो, इस आशा के साथ कलम को विराम देती हूं कि मेरे सारे बच्चे सफलता के नये शिखर छुएंगे व अपनी इस वाडी को एक मां की गोद को कभी नहीं भूलेंगे। जिस गोद में वे खेले हैं।
कुमार अहमदाबादी
चंदा जैसा मुखड़ा है साली का
औ’ पूनम जैसा है घरवाली का
दोनों कविता को प्रेरित करती हैं
रिश्ता है दोनों से मतवाली का
कुमार अहमदाबादी
सूर्योदय हो या संध्या की बेला
मन कहता है चल अकेला चल अकेला
जीवनपथ पर चलना ही जीवन है
चलता रह तू मिल जाएगा मेला
कुमार अहमदाबादी
दोनों को जानती है दुनिया सारी
जोरू से है मेरी गहरी यारी
बिन फेरे हो गये हैं इक दूजे के
मय है मेरी जोरू प्यारी प्यारी
कुमार अहमदाबादी
रहता है मस्ती में मन बंजारा
साथी है मन का प्यारा इकतारा
इक दूजे में गुम रहते हैं दोनों
औ’ गाते हैं तारा रारा रारा
कुमार अहमदाबादी
इक महफ़िल मित्रों की सजा के यारों
प्याला पीना पास चिता के यारों
पूरी करना अंतिम इच्छा मेरी
अर्थी पर दो बूंद चढा के यारों
कुमार अहमदाबादी
जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम कुमार अहमदाबादी