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मंगलवार, अगस्त 20

तू नहीं तो ये ऋत (सिने मैजिक) राग किरवाणी पार्ट - ०१

             दो तीन वर्ष पहले बीकानेर स्वर्णकार समाज के बीकानेर एवं अहमदाबाद के लोगों में एक पैरोडी गीत ‘होळी आई मस्तानी आजा’ बहुत लोकप्रिय हुआ था एवं आज भी लोकप्रिय है। 

        पैरोडी गीत उसे कहा जाता है। जो किसी गीत की धुन पर लिखा जाता व गाया जाता है। 

         होळी आई मस्तानी आजा गीत १९५४ में पेश हुयी। सुपर हीट म्यूजिकल मूवी नागिन के गीत मेरा दिल ये पुकारे आजा की धुन पर गाया गया था। 

          १९५४ में पेश हुई नागिन के लगभग सब गीतों ने धूम मचाई थी। ये मेरा दिल ये पुकारे आजा भी सुपर हीट था। इस गीत को राजेन्द्र कृष्ण ने लिखा था और हेमंत कुमार ने स्वरबद्ध किया था। 

           इस गीत को याद करते ही राग किरवाणी याद आता है। किर मूल संस्कृत शब्द है। कीर यानि शुक अर्थात तोता, पोपट। कहा जाता है इस राग की सरगम (वाणी - आवाज) पोपट की वाणी सी मधुर लगती है। 

            उत्तर भारत के संगीत में एसे राग बहुत कम नहीं के समान ही है। गांधार और धैवत दोनों कोमल स्वर हों। ये राग दक्षिण भारत का है। जो अदभुत करुण रस प्रधान राग है। हिंदी फिल्मों में इस राग पर आधारित सृजित गीतों में ९९ प्रतिशत गीत करुण रस प्रधान है। एक उदाहरण तो आप को नागिन के गीत का दे दिया है। 

एसा लगता है; धीमी गति के आठ मात्रा के कहरवा ताल मे लता मंगेश्कर ने इस गीत को गाते समय दिल निचोड़कर रख दिया है। 

पहले अंतरे के शब्द हैं, तू नहीं तो ये ऋत ये हवा क्या करु, क्या करुं, दूर तुझ से मैं रह के बता क्या करुं, क्या करुं...। 

दूसरे अंतरे के शब्द हैं, आंधियां वो चली आशियां लुट गया..लुट गया। गीत का फिल्मांकर भी अलौकिक है। एसा है जैसे सोेने में सुगंध मिल गयी। आप ये गीत कभी मेघ छायी रात को या भोर होने से एक दो घंटे पहले की नीरव शांति में ये गीत सुनियेगा। आप के रोएं खड़े हो जाएंगे; हृदय में हलचल मच जाएगी। एसा होने का कारण इस राग में बसा विषाद है। इस में बसा विषाद इस के प्रत्येक स्वर को हृदयस्पर्शी बनाता है। 

ता.२६-११-२०१० के दिन गुजरात समाचार की लेखक अजित पोपट द्वारा लिखित कॉलम सिने मैजिक में छपे लेख का संक्षेपानुवाद

अनुवादक - कुमार अहमदाबादी 


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