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शनिवार, अगस्त 24

मन से आदर (रुबाई)

 

सब करते हैं इस का मन से आदर

पत्नी भरती है गागर में सागर

भोली है लेकिन है समझदार कुशल

अवसर अनुसार है बिछाती चादर

कुमार अहमदाबादी

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी