तिथियां कभी टूटती है और कभी दो होती है, क्यों?
अनुवादक - महेश सोनी
आप को आश्चर्य होगा। एक ही दिन में दो तिथि कैसे होती है। अंग्रेजी कैलेंडर में तारीख व्यवस्था है। जब की भारतीय व्यवस्था पंचांग व्यवस्था है। तिथि व्यवस्था चंद्र की गति पर आधारित है। एकम से अमावस तक चंद्र पृथ्वी की एक प्रदक्षिणा (यानि एक चक्कर, एक राउंड) करता है। एक प्रदक्षिणा अर्थात ३६०(360) डिग्री का एक पूरा चक्कर होता है। चंद्र की प्रदक्षिणा के साथ पृथ्वी अपनी धुरी पर सूर्य की प्रदक्षिणा करती है; इसलिये चंद्र कभी कभी पृथ्वी गोलाकार के १२(12)अंशों से कुछ ही घंटों में गुजर जाती है। इसलिये महीने के ३०(30) दिनों का मेल बिठाने के लिये उस तिथि को रद कर दिया जाता है। जिसे ज्योतिष की भाषा में तिथि का क्षय होना कहा व आम बोलचाल की भाषा में तिथि का टूटना कहा जाता है। दूसरी ओर कभी कभी चंद्र को पृथ्वी के बारह अंशो से गुजरने में एक दिन से ज्यादा समय लगता है। एसे मामले में पंचांग में एक अतिरिक्त तिथि जोडी जाती है। जिस से कभी कभी कोई तिथि दो हो जाती है। इसी तरह वर्ष के ३६५(365) दिनों का सामंजस्य करने के लिये अधिक मास जोडा जाता है।
ता.17-08-2024( १७-०८-२०२४, शनिवार) के गुजरात समाचार की जगमग पूर्ति मध्य पृष्ठ (4-5) पर छपे लेख का अनुवाद (लेखक का नाम छपा नहीं है)
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