दिल जो पखेरु होता पिंजरे में मैं रख लेता
सिने मैजिक
भाग - ०२
पुकारता चला हूं मैं गीत में गिटार और मेन्डोलीन का लचीला उपयोग हुआ है।
राग किरवाणी पर वापस लौटते हैं। १९७१ में किशोर कुमार ने आत्मकथा सरीखी दूर का राही नाम की मूवी बनाई थी। उस में एक गीत सुलक्षणा पंडित और किशोर कुमार की आवाजों में था। उस गीत के बोल *बेकरार दिल तू गाये जा, खुशियों से भरे वो तराने, जिन्हें सुन के दुनिया झूम उठे.....*इस गीत के शब्द प्रत्यक्ष तो आनंद व्यक्त करने का कह रहे थे। लेकिन तर्ज में गमगीनी थी। एसा ही एक प्रयोग राज कपूर की मूवी राम तेरी गंगा मैली के लिये गीतकार संगीतकार रविन्द्र जैन ने किया था। इस राधा मीरा, दोनों ने श्याम को चाहा, अंतर क्या दोनों की चाह में बोलो, इस प्रेम दीवानी इक दरश दीवानी... गीत में उपर के स्तर पर भक्ति का भाव नजर आता है। लेकिन गहरे उतरने पर विरह का भाव नजर आता है।
छोटा सा एक एक अन्य मुद्दा
शास्त्रीय संगीत के उपासक इस राग को ज्यादा गाते नहीं है। इसे वाद्य संगीत के लिये ज्यादा उपयुक्त मानते हैं। इस में भी एक अपवाद है। पंडित रविशंकर द्वारा रचित एक बंदिश *नटनागरा सुंदरा....* को ठुमरी गायिका श्रीमती लक्ष्मी शंकर गाती हैं।
ता.०३-१२-२०२४ के दिन गुजरात समाचार में अजित पोपट द्वारा लिखित कॉलम सिने मैजिक में छपे लेख का आंशिक अनुवाद
अनुवादक - कुमार अहमदाबादी
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