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सोमवार, अक्टूबर 16

मन के पट खोलो(रुबाई)


 नैनों से नैनों में मदिरा घोलो

मदिरा पीकर मीठा मीठा बोलो

मदहोशी जब नभ को छू ले तब तुम

मन के सम्मुख तन मन के पट खोलो

कुमार अहमदाबादी

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बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी