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रविवार, अक्टूबर 22

कोमल और संस्कारी(रुबाई)


वो भोली कोमल औ' संस्कारी है

रिश्तेदारों को मन से प्यारी है

जल सी चंचल सागर सी गहरी औ'

गंगा जैसी पावन सन्नारी है

कुमार अहमदाबादी

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बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी