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शुक्रवार, अक्तूबर 6

मन का ताला(रुबाई)

मन से ज्यादा गहरा है ये प्याला

प्याले से ज्यादा गहरी है हाला

जो भी डूबा गहराई में इन की

उसने खोला अपने मन का ताला

*कुमार अहमदाबादी*

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मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी