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सोमवार, मई 27

छलकने का नजारा (गज़ल)


गज़ल

खूब  होता है छलकने का नजारा 

आंख से छमछम बरसने का नजारा 


ले लगा ले घूंट दो फिर देख प्यारे 

आज प्यासों के बहकने का नजारा 


क्या बताऊं यार कितना खूबसूरत 

था जवानी के भटकने का नजारा 


रोशनी आंखों की बढ जाएगी लाले 

देख चंदा के चमकने का नजारा 


बस गया है आंख में पनघट कुआं औ’

और चंदा के चमकने का नजारा 

कुमार अहमदाबादी


शनिवार, मई 25

मैडम, आप मेकअप क्यों नहीं करती? (अनुवादक - कुमार अहमदाबादी)


कलेक्टर मैडम, मेकअप क्यों नहीं करती
मलप्पुरम जिला कलेक्टर एम एस रानी सोयामोई कॉलेज के विद्यार्थियों से वार्तालाप र रही थी।

   उन्होंने कोई ज्वैलरी नहीं पहनी थी। विद्यार्थी सब से ज्यादा अचंभित इस बात से थे। मैडम ने चेहरे पर पाउडर तक नहीं लगाया था। मैडम ने एक या दो मिनिट वक्तव्य दिया। लेकिन उन का एक एक शब्द अर्थ से भरपूर था।

वक्तव्य के बाद प्रश्नोत्तर हुए।
प्रश्न - आप का नाम व मूल स्थान?
उत्तर - मेरा पारिवारिक नाम रानी है। मैं मूलतः झारखंड से हूं।

चंद प्रश्नों के बाद उन्होंने कहा और कुछ पूछना चाहेंगे?
एक दुबली पतली लडकी ने खडी होकर पूछा *मैडम, आप मेकअप क्यों नहीं करती?

सहसा कलेक्टर मैडम का चेहरा पसीने से तर होकर शून्य में खो गया। चेहरे से मुस्कान लुप्त हो गयी। मैडम को निहार रहे विद्यार्थी व शिक्षक गण भी मौन होकर मैडम को कौतुहल में डूब गये।
मैडम ने पानी की बोतल खोलकर कुछ घूंट लिये। मैडम ने धीमी आवाज में सब को बैठने के लिये कहा; फिर धीरे से बोली
आप के प्रश्न ने मुझे उलझन में डाल दिया है। मैं इस का उत्तर एक दो शब्द या वाक्य में नहीं दे सकती। इस के उत्तर में मुझे आप को मेरी जीवनी सुनानी पडेगी। अगर आप मुझे अपने दस कीमती मिनिट दें तो….
आवाजे उठी हमें सुनाईये हम तैयार हैं।

तो सुनिये,

मैं झारखंड के आदिवासी विस्तार में पैदा हुई थी। इतना कहकर मैडम एक क्षण के लिये रुकी। दर्शकों की तरफ देखा।

मेरा जन्म कोडरमा जिले में एक छोटे से झोंपड़े में हुआ था। वहां अबरक की अनेक खदाने थी। मेरे माता व पिता खदान मजदूर थे। मुज से बडे दो भाई एवं एक छोटी बहन थी। हम सब एक झोंपड़े में रहता था। उस में बरसात के मौसम में पानी रिसता था।
मेरे माता पिता खदान में काम करते थे; क्यों कि उन के पास वहां करने के लिये दूसरा कोई काम नहीं था।
जब मैं चार वर्ष की थी। तब मेरे माता पिता व दोनों भाईयों ने विविध समस्याओं के कारण चारपाइयां पकड़ ली।
उस समय मुझे इतना ही मालूम हुआ की अबरक की खदानों की जानलेवा धूल मिट्टी के कारण उन्हें शारीरिक समस्याएं हुई थी।
जब मैं पाच वर्ष की थी। मेरे दोनों भाईयों का उन समस्याओं के कारण अवसान हो गया।

कलेक्टर मैडम दो मिनिट के लिये चुप हुयी। डबडबाई आंखों को रुमाल से पोंछा।
उस समय सादा पानी व दो रोटी हमारा खाना था।

डॉक्टर तो दूर की बात है। मेरे गांव में पाठशाला भी नहीं थी। क्या आप एसे गांव के बारे में  कल्पना कर सकते हैं। जहां पाठशाला ना हो, अस्पताल ना हो, बिजली ना हो, अरे शौचालय तक ना हो!

एक दिन मेरे पिता भूख से बेहाल मेरे शरीर को लोहे के पतरे से ढका; फिर उठाया और काम पर चल दिये।
मैं अपने पिता के साथ अबरक की खदान में थी। जो की बहुत पुरानी थी। जिसे खोदा जा रहा था, निरंतर गहरे से गहरे तक खोदा जा रहा था। मुझे वहां उपलब्ध अबरक तक घिसट घिसट कर पहुंचकर उसे लेकर वापस आना पडता था। ये एसा कार्य था; जिसे सिर्फ दस वर्ष तक के बच्चे ही कर सकते थे।
जिस दिन पहली बार मैंने पेट भर खाना खाया था। मुझे उल्टी हो गयी थी; क्यों कि मेरा पेट खाने को पचा नहीं सका था।
जब मैं पहली कक्षा में थी। मैं अबरक इकट्ठा करते समय सांस में जहरीली हवा में लेती थी। वहां भू स्खलन के कारण बच्चों की मौत होना सामान्य घटना थी। इसी तरह प्राण घातक रोगों का होना भी नयी बात नहीं थी।
आठ घंटे काम करने के बाद आप इतना तो कमा ही सकते हैं कि एक बार खाना खा सको। लेकिन मैं भूख और पानी की कमी और सांस लेते समय शरीर में रोज जहरीली हवा जाने के कारण पतली और कमजोर होती जा रही थी।
एक वर्ष बाद मेरी बहन भी खदान में मजदूर बन गयी। हम सब यानि मैं मेरे पिता व बहन के काम करने के कारण हम इतने कम हो गये कि हमें भूखा नही सोना पडता था।
लेकिन भाग्य ने दूसरी तरह डराना शुरू कर दिया। एक दिन मै तेज बुखार की वजह से काम पर नहीं जा सकी। अचानक बरसात आ गयी। खदान धस जाने के कारण हजारों लोग मौत की गोद में गये। उन में मेरे पिता माता व बहन भी थे।
मैडम रानी की आंखों में आंसू छलछलाने लगे। वहां बैठे लोग सांस लेना भूल गये थे। ज्यादातर आंखें छलछला गयी थी। याद रहे मैं तब सिर्फ छह वर्ष की थी।

आखिर कार मैं सरकारी अगती मंदिर पहुंची। वहां मैंने शिक्षा प्राप्त की; और आज एक कलेक्टर के रुप में आप के सामने हूं।
आप को शायद आश्चर्य होगा। मेरी इस जीवनी से मेरे मेकअप न करने का भला क्या संबंध?
सब की तरफ एक नजर घुमाने के बाद वे बोली *मुझे अभ्यास काल के दौरान ये पता चला है कि मैं जो अबरक इकट्ठा करती थी। उस का उपयोग मेकअप के उत्पाद बनाने में भी होता है। मेकअप के कारण चेहरा चमकीला उसी खनिज के कारण दिखता है। जो हम खदान में से निकालते थे
कॉस्मेटिक कंपनियों द्वारा आप को जो उत्पादन मिलते हैं। जिस से चेहरे चमकते हैं। उस के लिये २००००(बीस हजार) बच्चों की जिंदगी को जोखिम में डाला जाता है।
अब आप मुझे बताइये। मैं कैसे मेकअप करुं?
वो कलेक्टर महिला इस घटना के की वर्षों बाद भारतीय गणतंत्र के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजमान हुयी।


शत शत सलाम

महामहिम
भारत देश की राष्ट्रपति
*माननीय
द्रौपदी मुर्मु जी को


बुधवार, मई 22

શબ્દ ખારા નથી લખતો(ગઝલ)


લખે છે શબ્દ પણ ખારા નથી લખતો

કોઈને સાપના ભારા નથી લખતો


નકામા અર્થ કે તારણ ન કાઢો હોં 

એ તો ખારા ને પણ ખારા નથી લખતો


હવા પાણી વગેરે પંચતત્વો ને

તે તારા કે મારા નથી લખતો


ભણેલો ને ગણેલો છે કલાપ્રેમી

છતાં પણ અક્ષરો સારા નથી લખતો


‘અભણ’ તું આમ તો અઢળક લખે છે પણ

કદી યે કાવ્ય તું તારા નથી લખતો

અભણ અમદાવાદી



मंगलवार, मई 21

कब बोलना और कब चुप रहना चाहिये?

 

कब बोलना और कब चुप रहना चाहिये?
वाणी इश्वर का वरदान है। हर इंसान को वाणी का महत्व समझना चाहिये। मीठी वाणी से बिगड़ते काम बन जाते हैं; जब की कड़वी वाणी से बनते काम बिगड जाते हैं। मीठी वाणी से बनते काम तो आपने बहुत देखे होंगे। यहां एक घटनाएं पेश करता हूं। जो अनुचित वाणी से बात बिगड़ने का उदाहरण है।
वर्ष 1825 में निकोलस प्रथम रशिया के सिंहासन पर विराजमान हुआ। लेकिन प्रजा उन का विरोध करने लगी। विरोधी चाहते थे की रशिया में भी अन्य युरोपीयन देशों की तरह बडे बडे उद्योग स्थापित किये जाएं।
विरोध को कुचलने के लिये निकोलस ने विरोधी नेता कोनरेती को मृत्युदंड की सजा सुना दी गयी। उसे फांसी देने के लिये फांसी के मंच पर खडा किया गया। लेकिन जैसे ही निकोलस को फांसी पर झूलाया गया। फांसी वाली रस्सी टूट गयी। निकोलस वहीं गिर पड़ा। वो उठा और उठकर बोला ‘देखा, रशिया को एक रस्सी तक बनाना नहीं आता।’
एसे अगर मुजरिम बच जाए तो उसे फांसी देने का दूसरा प्रयास नहीं किया जाता। मुजरिम को जीवनदान मिल जाता है।
संदेश वाहक ये समाचार लेकर सम्राट निकोलस के पास गया। उसने निकोलस को घटना की जानकारी दी एवं कहा कि अब कोनरेती को फांसी नहीं दी जा सकती। आप को उस के लिये माफीनामा लिखकर देना होगा। सम्राट कोनरेती ने माफीनामा लिख दिया। दूत को माफीनामा देते वक्त पूछा ‘इस घटना के बाद कोनरेती कुछ बोला था? दूत ने बता दिया की कोनरेती क्या बोला था। सुनकर निकोलस ने ये कहते हुए माफीनामा फाड़ दिया कि अब तो कोनरेती और प्रजा  को कोनरेती की बात को गलत साबित कर के ये बताना ही पडेगा की रशिया कितनी मजबूत रस्सी बनाता है।
कोनरेती को दूसरे दिन फिर फांसी के फंदे पर लटकाया गया। दूसरी बार रस्सी नहीं टूटी।
कुमार अहमदाबादी

लघुकथा के नियम

कांता रॉय की कलम से

लघुकथा साहित्य की एक ऐसी विधा है जो क्षणिक घटनाओं पर आधारित होती हैं । वर्तमान में लघुकथा काफी लोकप्रिय हैं । आप जब भी लघुकथा लेखन करें, कृपया इन मानकों पर उसको चेक जरूर करें।


सार्थक लघुकथा के प्रमुख मानक - तत्व इस प्रकार है :--

१ - कथानक- प्लॉट , कथ्य को कहने के लिये निर्मित पृष्ठभूमि ।

२- शिल्प - क्षण विशेष को कहने के लिये भावों की संरचना ।

३- पंच अर्थात चरमोत्कर्ष - कथा का अंत ।

४- कथ्य - पंच में से निकला वह संदेश जो चिंतन को जन्म लें ।

५- लघुकथा भूमिका विहीन विधा है।

६- लघुकथा का अंत ऐसा हो जहाँ से एक नई लघुकथा जन्म लें अर्थात पाठकों को चिंतन के लिये उद्वेलित करें।

७- लघुकथा एक विसंगति पूर्ण क्षण विशेष को संदर्भित करें ।

८- लघुकथा कालखंड दोष से मुक्त हो ।

९- लघुकथा बोधकथा ,नीतिकथा ,प्रेरणात्मक शिक्षाप्रद कथा ना हों ।

१०- लघुकथा के आकार -प्रकार पर पैनी नजर ,क्योंकि शब्दों की मितव्ययिता इस विधा की पहली शर्त है ।

११- लघुकथा एकहरी विधा है ।अतः कई भावों व अनेक पात्रों का उलझाव का बोझ नहीं उठा सकती है।

१२- लघुकथा में कथ्य यानि संदेश का होना अत्यंत आवश्यक है।

१३- लघुकथा महज चुटकुला ना हों ।

१४- लेखन शैली

१५- लेखन का सामाजिक महत्व ।

कांता रॉय की कलम से

रविवार, मई 19

नैन धर्नुविधा


*नैन धर्नुविधा*

 मुग्धे धानुष्कता केयमपूर्वा त्वयि दृश्यते

यया विध्यसि चेतांसि गुणैरेव न सायकै: ।।१३।।

हे मुग्ध सुंदरी, तुमने धनुर्विद्या में अदभुत अपूर्व महारथ बेमिसाल कुशलता प्राप्त की है।‌ असाधारण सिद्धि हासिल की है। एसी अप्रतिम कुशलता कैसे प्राप्त की है। तू केवल गुण से पुरुष के हृदय को बींध देती है। 

ए भोली युवती तूने एसी अदभुत बाण विधा कैसे सीखी? केवल नैन कमान की मामूली सी हरकत से हृदय को बींध देती है; छलनी कर देती है। 


इसी संदर्भ में एक कवि ने लिखा है कि,

था कुछ न कुछ कि फांस सी इक दिल में चुभ गयी।

माना कि उस के हाथ में तीरो सनां न था।।


जब की मिर्ज़ा ग़ालिब ने लिखा है,

इस सादगी पे कौन न मर जाए ए खुदा 

लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं


एक और बेहतरीन शायर जौक ने लिखा है,

तुफुगा तीर तो जाहिर न था कुछ पास कातिलों के 

इलाही फिर जो दिल पर ताक के मारा तो क्या मारा 


सार ये है कि पुरुष को वश में करने के लिये स्त्रियों को किसी तरह के भौतिक मानव निर्मित अस्त्रों शस्त्रों की जरुरत नहीं पड़ती। वे अपनी वाणी, व्यवहार, नखरे एवं अदाओं से पुरुष को अपने वश में कर सकती है।

श्री भर्तहरी विरचित श्रंगार शतक के तेरहवें शतक का भावार्थ 

*कुमार अहमदाबादी*



दास कामदेव

*काम कामिनी का दास है*

श्री भर्तहरी विरचित श्रंगार शतक के श्लोक का भावार्थ 

पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी 

नूनमाज्ञाकरस्तस्या: सुभ्रुवो मकरध्वज:।

यतस्तन्नेत्रसंचारसूचितेषु प्रवर्तते।। ११।।

कामदेव निश्चय ही सुंदर भौंहों वाली स्त्रियों की आज्ञा का चाकर है, दास है; क्यों कि जिन पर उन के कटाक्ष पड़ते हैं। उन्ही को वो जा दबाता है। 

जिसे सुंदरियां बेचैन करती है। कामदेव उन्हीं को जाकर मारता है। अव्वल तो स्त्रियां स्वयं ही सक्षम होती है। अपने नैन कटाक्षो से बडे बडे शूरवीरों के छक्के छुड़ा सकती है। उपर से उन के कहने से कामदेव सक्रिय हो जाये। उस के बाद तो शिकार की रक्षा कोई नहीं कर सकता। एसे में करेला वो भी नीम चढ़ा कहावत सत्य साबित हो जाती है। 

एसी परिस्थितियों में अपनी रक्षा कौन कर सकता है? वही जो उन की दृष्टि की सीमा रेखा से बाहर हो। 

शायद इसीलिए मोक्ष के इच्छुक पुरुष मनुष्यों की बस्तियों को छोड़कर निर्जन वनों मे जाकर आत्मोद्धार का प्रयास करते हैं। क्यों कि निर्जन वन में कामिनी के न होने से उस के सेवक कामदेव के सफल होने की संभावनाएं न्यूनतम रह जाती है। शायद इसीलिए आत्मोद्धार की इच्छा रखनेवाले पुरुष कामिनी की पहुंच से दूर जाकर निवास करना ही श्रेयस्कर समझते हैं। उसी में अपना कल्याण मानते हैं। 


कामिनी हुक्मी काम यह नैन सैन प्रगटात

तीन लोक जीत्यो मदन ताहि करत निज हात

सार

कामदेव कामिनीयों का सेवक है।

श्री भर्तहरी विरचित श्रंगार शतक के ग्यारहवें श्लोक का भावार्थ 

*पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी*


गुरुवार, मई 16

भाग्यवान क्या पीते हैं?


छके मदन की छाक, मुदित मदिरा के छाके

करत सुरत रण रंग, जंग कर कछु थाके

पौढ रहे लिपटाय, अंग अंगन में उरझे

बहुत लगी जब प्यास तबहि चित चाहत मुरझे

उठ पियत आधी रात गये, शीदल जल या शारद को

नर पुण्यवन्त फल लेत है निज सुकृत हि की फरद को

।।४७।।


सार

शरद की चांदनी की रात में प्रेम प्रक्रिया से थकी हुयी तृप्त नारी के द्वारा लाया गया; जल उसी के हाथों भाग्यशाली ही पीते हैं।

पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी

श्री भर्तहरी रचित श्रंगार शतक से साभार


हरा भरा मधुवन (रुबाई)

 


यौवन तेरा हरा भरा है मधुवन
फैलाता है सुगंध जैसे चंदन
मादक ऋतु में बौराई मृग नैनी
के नवयौवन को करता हूं वंदन
कुमार अहमदाबादी


बुधवार, मई 15

साहित्य संगीत कलाविहीन जीवन कैसा होता है?


।।12।।

 साहित्यसंगीतकलाविहीन:

साक्षात्पशु: पुच्छविषाणहीनः।

तृणं न खादन्नपि जीवमानः

तद्भागधेयं परमं पशुमान्।।


भावार्थ 

जो मनुष्य साहित्य, संगीत और कला विहीन है; यानि जो साहित्य और संगीत शास्त्र का जरा भी ज्ञान नहीं रखता; जरा भी रुचि नहीं रखता या अनुराग नहीं रखता। वह बिना पूंछ और सींग का पशु है। वह घास नहीं खाता और जीता है। ये इतर पशुओं का सौभाग्य है।

नीती शतक के बारहवें श्लोक का भावार्थ 

पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी 



मंगलवार, मई 14

पुत्रवधू - सवाई बेटी

*पुत्रवधू - सवाई बेटी* 

ये जग जाहिर है. संबंधों में विजातीय व्यक्तियों में ज्यादा तालमेल होता है. सामंजस्य होता है. मान सम्मान ज्यादा होता है. हां, इस में कुछ अपवाद अवश्य होते हैं. लेकिन वैसे अपवाद हर संबंध में होते हैं. 

लगभग आप सब ने महसूस किया होगा. पिता पुत्री के संबंधों में कुछ अलग स्तर का तालमेल होता है. माता पुत्र के संबंधों  में तालमेल अलग स्तर का होता है. सासू जंवाई के संबंध में तालमेल अच्छा हो तो पति पत्नी के जीवन में बिखराव होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती है. इसी तरह ससुर और पुत्रवधू के संबंध में भी तालमेल आपसी सूझबूझ अलग ही स्तर के होते हैं. इस का कारण ये होता है कि पुत्रवधू को ससुर में अपने पिता और ससुर को पुत्रवधू में बेटी दिखाई देते हैं. 

इस के अलावा कुछेक कारण होते हैं. ज्यों ज्यों समय गुजरता जाता है. पुत्र व्यवसाय में व्यस्त होता जाता है. सासू भी वृद्ध हो जाती है. घर गृहस्थी को सुचारु रूप से चलाने की जिम्मेदारी धीरे धीरे बहु पर आ जाती है. 

अक्सर पुत्र को ये मालूम नहीं होता की पापा को कब क्या चाहिए, कौन सी दवाई कब देनी है, उन्हें कौन सी सब्जी पसंद है और कौन सी नहीं. उन की दिनचर्या क्या है. क्यों की वो अपने व्यवसाय में पूरी तरह व्यस्त होता है. हम सुनार घर में रहकर व्यवसाय करते हैं; इसलिए हमें उस परिस्थितियों से गुजरना नहीं पड़ता. जिन से दूसरे समाज के लोग गुजरते हैं. वहां पुत्र अक्सर व्यवसाय के कारण घर बाहर घर से बाहर रहने के कारण घरेलू परिस्थितीयों से परिचित नहीं होता. ज्यों ज्यों पिता की आयु बढ़ती है.  शारीरिक दुर्बलता बढ़ती है. तब घर में पिता की जरूरतों का ख्याल पुत्रवधू ही रखती है. एसे में अगर सुगर या रक्तचाप(हाई या लो प्रेशर) की समस्या होने पर दवाइयां शुरू हो जाती है; तो बहू को ही मालूम होता है. पापा जी को कब कौन सी गोली कितने बजे देनी है. पापा जी के लिए खाने में अब कौन से मौसम में कौन सी सब्जी गुणकारी रहेगी और कौन सी नुकसान करेगी. वो उसी के अनुसार भोजन का मेनू भी बनाती है. आप में से कई लोगों ने ये संवाद सुना होगा कि नहीं, अभी इस मौसम में ये सब्जी नहीं बना सकती क्यों की पापा जी को इस मौसम में ये नुकसान करती है. एसा संवाद भी सुना होगा कि पापाजी को ये सब्जी बहुत पसंद है. अभी इस की सीजन भी है तो आज यही सब्जी बनाती हूं. बहु को मालूम होता है. पापाजी को सुबह की चाय कितने बजे चाहिए. नाश्ते में क्या चाहिए. बहु पापा जी के स्वास्थ्य के प्रति इतनी जागरुक होती है की अगर भूल से भी ससुर कोई एसे व्यंजन की फरमाइश कर दे. जो उन की सेहत के लिए नुकसानदायक हो तो ये कहने से भी नहीं हिचकती कि पापा जी ये आप को लेना नहीं है. आप को ये नुकसान करेगा. और......मजे की बात देखिए ससुर खुशी खुशी व हंसकर बहु की सलाह को मान भी लेता है. लेकिन यदि यही सलाह अगर पत्नी दे तो तुरंत उस पर गुस्सा हो जाता है. फौरन पत्नी से कहता है हां, अब खाना पीना भी तेरी मरजी के अनुसार करना पड़ेगा मुझे! लेकिन बहु का कहना हंसकर स्वीकार कर लेता है. ये पता ही नहीं चलता. जीवन बहु को कब *सवाई बेटी* बना देता है.                                                              *कुमार अहमदाबादी*


सोमवार, मई 13

શબ્દમાળા


આંખમાં આકાશ છે

પાંખને વિશ્વાસ છે

ટોચતો હું મેળવીશ

ગીત મારા ખાસ છે


લાગણીને ગીતોમાં

વ્યાકરણનો સાથ છે

ટોન સેમીટોન* ને

છંદ, લય સંગાથ છે


દૂધ જો ઉભરાય તો

ઠામ છોડી જાય છે

લાગણી ઉભરાય તો

તે ગઝલ થઈ જાય છે


ઘાવ કણસે તે પછી

પિંડ બાંધે છે ગઝલ

આંખમાંથી આંસુ નહીં

રોજ ટપકે છે ગઝલ


કર્મઘેલા શ્વાસને 

આ અટલ વિશ્વાસ છે

રક્તભીની છે ગઝલ

આ ગઝલ કંઈ ખાસ છે


પ્રેમનાં ઇતિહાસને

ગીતમાં હું ઢાળું છું

લીલાછમ મમ ઘાવને

શબ્દોથી પંપાળું છું


આંસુ સૂકી આંખનાં

રંગ એવો લાવશે

બેવફાનું કાળજું

ગીત થઈ કંપાવશે


ગીત મારા સાંભળી

બેવફાની આંખમાં

આંસુ જ્યારે આવશે

ઘાવ થનગન નાચશે


બેવફાને પીડવી

જીંદગીનું લક્ષ્ય છે

દાખલો બેસાડવો

પ્રેમનું કર્તવ્ય છે


મૂળ સાથે વ્યાજ દઈશ

રૂપને શણગાર દઈશ

એક સામે ચાર ઘાવ

બેવફાને રોજ દઈશ


પણ 'અભણ' હું આખરે

વાત વિચારું એટલી

જુલ્મ પ્રેમી પર કરું (તો)

મારી કાઠી કેટલી?


દૂધમાંનો ઉભરો

જળથી ઉતરી જાય છે

માનવી પણ, વાતને

ક્યાંથી ક્યાં લઈ જાય છે


આંખમાં આકાશ છે.......


ટોન સેમીટોન= પશ્ચિમી સંગીતની ભાષામાં સ્વરો વચ્ચેના અંતરને બતાવવા માટે વપરાતા શબ્દ

અભણ અમદાવાદી

रविवार, मई 12

मीठी वाणी क्यों?

 



कहता हूं मैं भेद गहन खुल्ले आम 

कड़वी वाणी करती है बद से बदनाम 

जग में सब को मीठापन भाता है 

मीठी वाणी से होते सारे काम 

कुमार अहमदाबादी

मीठी वाणी का जीवन

*मीठी वाणी का जीवन*

*पोस्ट लेखक - कुमार अहमदाबादी* 

*नीती शतक से साभार*

 केयूराणि न भूषयन्ति पुरुष हारा न चन्द्रोज्जवला

न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजाः 

वाण्ये का समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते 

            क्षीयन्ते खामु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्    ।19।

केयूर(बाजूबंध, भुजबंध) और चन्द्रमा के समान ‌उज्वल मोतियों के हार धारण करने और उबटन करने तथा केशों में पुष्प धारण करने से एसी शोभा नहीं हो सकती; जैसी कि संस्कार युक्त अलंकृत वाणी से होती है: क्यों कि अलंकार तो नष्ट हो जाते हैं। लेकिन अलंकृत वाणी अर्थात मीठी वाणी मीठे बोल कभी नष्ट नहीं होते। उन का प्रभाव जीवन के साथ और जीवन के बाद भी रहता है। आदमी संसार से चला जाता है। लेकिन उस की मीठी वाणी यहीं रह जाती है। 



रविवार, मई 5

मुलाकातों की आशा(रुबाई)



मीठी व हंसी रातों की आशा है

रंगीन मधुर बातों की आशा है 

कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से

मदमस्त मुलाकातों की आशा है 

कुमार अहमदाबादी


 

स्पेश्यल मैरेज एक्ट १९५४(1954) का फायदा




स्पेश्यल मैरेज एक्ट १९५४(1954) का फायदा

गुजरात समाचार की ता-05-05-2024 रविवार की रविपूर्ति के पांचवे पृष्ठ पर छपे लेख का अनुवाद
अनुवादक - महेश सोनी

स्पेश्यल मैरेज एक्ट १९५४(1954) का सबसे बडा फायदा जानिये।
भारत विविधताओं से भरा राष्ट्र है। यहां भांति भांति के रीत रिवाज संस्कार व संस्कृति को मानने वाले व उस के अनुसार जीने वाली प्रजा है। सरकार ने शादी के हेतु उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये खास कानून बनाएं हैं।
जैसे कि हिन्दू मैरिज एक्ट १९५५(Hindu martige act 1955) हिन्दू की हिन्दू से शादी के बारे में है। मुस्लिमों को शादी(निकाह) करनी हो तो मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) (muslim personal law(shariat) application act 1937) एप्लिकेशन एक्ट १९३७(1937) का पालन करना पड़ता है। ईसाईयों के लिये इन्डियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट १८७२(1872) है। इसी तरह पारसीयों के लिये अलग एक्ट है। जो पारसी मैरिज एन्ड डिवोर्स एक्ट १९३६(1936) का है। सीक्खों के लिये आनंद मैरिज एक्ट  1909 भारत सरकार ने बनाया है।

उपरोक्त सारे कानून उन व्यक्तियों के लिये हैं। जब एक ही धर्म के लडका लडकी की शादी का मामला होता है। इन धर्मों का पालन करने वाले जब एक ही धर्म के होते हैं। तब उपरोक्त कानून असरकर्ता होते हैं। जैसे की अगर कोई लडका हिन्दू मैरिज एक्ट के अनुसार शादी करना चाहता हो तो उस से शादी करने वाली लडकी भी हिन्दू ही होनी चाहिए। मुसलमान लडकी अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार शादी करना चाहती हो तो लडका भी मुस्लिम होना चाहिए। एसा ही अन्य धर्मों के लिये है!
एक उदाहरण देकर समझाउं? अब अगर कोई पारसी लडका हिन्दू लड़की से शादी करना चाहता हो तो उस के सामने कानून के दो विकल्प उपलब्ध हैं। एक हिन्दू मैरिज एक्ट और दूसरा पारसी मैरिज एन्ड डिवोर्स एक्ट; इन दो कानूनों के अंतर्गत वे शादी कर सकते हैं।
लेकिन खूबी की बात ये है। जिस तिस कानून के अंतर्गत शादी करने वाले दोनों व्यक्ति एक ही धर्म का पालन करने वाले होने चाहिये; और अगर दो में से एक व्यक्ति अलग धर्म की हो तो जिस कानून को मानकर उस के अंतर्गत शादी कर रहे हों: पहले उस धर्म का स्वीकार करना पड़ता है। अगर, एक मुस्लिम लड़का इसाइ लडकी से मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत शादी कर रहा हो तो लडका तो मुस्लिम है; लेकिन इसाइ लडकी को भी मुस्लिम धर्म का स्वीकार करना पड़ता है। उस के बाद ही दोनों को मुस्लिम पर्सनल लॉ अपने दायरे में निकाह की मंजूरी देता है।
दूसरी तरफ पति पारसी हो और पति सीक्ख हो तो इन दोनों को कानून श्रेष्ठ विकल्प देता है। इस विकल्प के अनुसार उन दोनों मे से एक को भी अपना धर्म परिवर्तन करने की ज़रुरत नहीं रहती।

अगर पति पत्नी दोनों के धर्म अलग हों और दोनों को धर्म परिवर्तन किये बिना शादी करनी हो तो  वे स्पेशियल मैरिज एक्ट १९५४(1954) की कानूनी सुविधा के अंतर्गत शादी कर सकते हैं। उन के लिये यही एकमात्र विकल्प है। स्पेश्यल मैरिज एक्ट १९५४(1954) का यही विशेष लाभ है कि उस के अंतर्गत दोनों अपना अपना धर्म बदले बिना पति पत्नि के संबंध से जुड सकते हैं। दूसरे कानूनों की तरह ये कानून शादी से पहले धर्म परिवर्तन के लिये बाध्य नहीं करता। इस के अंतर्गत शादी करने वालों को अपना धर्म बदलने की जरुरत नहीं पडती।

गुजरात समाचार की ता05-05-2024 रविवार की रविपूर्ति के पांचवे पृष्ठ पर छपे लेख का अनुवाद
अनुवादक - महेश सोनी


गुरुवार, मई 2

हो गया है प्यार (मुक्तक)


 

સ્વપ્નને સાકાર કરવાની કળા (ગીત)


સ્વપ્નને સાકાર કરવાની કળા ગુજરાત જાણે છે

માટે આજે  નર્મદાના નીરને સાબરમાં વહાવે છે............સ્વપ્ન




આંધી કે  તોફાન કે વરસાદ કે હો રેત ધગધગતી

સંકટોથી બાથ ભીડીને ચરણ આગળ ધપાવે છે

લક્ષ્ય મોટાં કોઈ દિ' સહેલાઈથી મળતા નથી જગમાં

ઠેસ અઢળક વાગે તોપણ ગુરુશિખર પર જઈને આવે છે..સ્વપ્ન



જન્મ પામે  છે અહીં વનરાજને સરદાર, ગાંધી જે

રાષ્ટ્રનાં નિર્માણ માટે જાનની બાજી લગાવે છે

શૂન્ય, પ્રેમાનંદ, અખો, નરસિંહ,કલાપી, કાન્ત કે શામળ

ગીત, ગરબા, છપ્પા, દુહાને ગઝલ-ગંગા વહાવે છે........સ્વપ્ન




આ ધરાના માનવી જ્યાં જાય છે વસવાટ માટે ત્યાં

ઓગળે છે ખાંડ થઈને દુધને ગળ્યું બનાવે છે

કાનુડાએ આ ધરા પર દ્વારકા નગરી વસાવી છે

આ ધરાનો જાદુ અદ્ભુત કહાનને જે ખેંચી લાવે છે.........સ્વપ્ન


ગુર્જરો ઝંખે સફળતા આ જીવનમાં ડગલેને પગલે

ગુર્જરોની હામને દુનિયા સદીયોથી વખાણે છે

વિશ્વની ગુજરાતના વિકાસપથ પર છે નજર આજે

ગુર્જરો આ વિશ્વને વેપારની કેડી બતાવે છે.................સ્વપ્ન

અભણ અમદાવાદી

स्वप्न को वास्तविकता बनाते हैं(गीत)

 दोस्तों, कल गुजरात दिवस यानि गुजरात का स्थापना दिवस था. इस अवसर पर मैं मेरा लिखा एक हिंदी गीत पेश कर रहा हूं. आशा है आप को पसंद आएगा.


स्वप्न को हम वास्तविकता यूँ बनाते हैं,

नर्मदा का नीर साबर में बहाते हैं.             

स्वप्न को….


हो सुलगती रेत या फिर बर्फ या पानी,

संकटो में पांव हिम्मत से बढ़ाते हैं.

लक्ष्य ऊँचे प्राप्त करने है कहाँ आसान,

गुरुशिखर तक ठोकरें खाकर भी जाते हैं, 

स्वप्न को….


अमरीका या अफरीका या पूर्व या पच्छम,

दूध में चीनी से हम घुलमील जाते हैं,

खींच लाया इस जमीं का जादू कान्हा को,

जो यहाँ पर द्वारिका नगरी बसाते हैं,         

स्वप्न को….


भूमि ये वनराज की, सरदार, गाँधी की,

राष्ट्र का जो नव-सृजन कर के दिखाते हैं,

शून्य, प्रेमानंद, अखो, नरसिंह, कलापी से,

काव्य-धारा भिन्न छंदों में बहाते हैं,             

स्वप्न को…


गुर्जरों के हौसले को दाद देता जग,

आम-जन भी खेल ऊँचा खेल जाते हैं,

खून की होली जो खेले उन से ये कह दो,

हम दशानन को दशहरे पर जलाते हैं,     

स्वप्न को….



वनराज चावड़ा सदियों पहले हुआ एक गुजराती विजेता योद्धा है. जिसे गुजरात का पहला विजेता माना जाता है। इस के अलावा गुजरात के सासण गिर के बब्बर शेर भी विख्यात है। एशिया में शेरों की आबादी अब सिर्फ सासण गिर के वन में ही बची है। गुजरात में बब्बर शेरों को वनराज यानि वनों का राजा कहा जाता है। 

*कुमार अहमदाबादी*

दैवी ताकत(रुबाई)

  जन्मो जन्मों की अभिलाषा हो तुम सतरंगी जीवन की आशा हो तुम  थोडा पाती हो ज्यादा देती हो दैवी ताकत की परिभाषा हो तुम  कुमार अहमदाबादी