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गुरुवार, मई 11

ये शाम सुहानी है (रुबाई )


ये शाम सुहानी है चली आओ तुम

इक रीत निभानी है चली आओ तुम

प्यासे को प्रतीक्षा नहीं करवाते जी

अब प्यास बुझानी है चली आओ तुम

कुमार अहमदाबादी

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मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी