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बुधवार, मई 17

माना की मंजिल दूर है(मुक्तक)


चलो माना की मंज़िल दूर है

ये भी माना विधाता क्रूर है

मगर वो जानता है राही के

जिगर में हौसला भरपूर है

*कुमार अहमदाबादी*

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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी