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गुरुवार, मई 4

रुप मधु(मुक्तक)


 यौवन जब से फूलों जैसा निखरा है
दैहिक मधुवन में क्या रुपमधु बिखरा है
आयी है ॠत अलबेली तन पर मन पर
पत्ता पत्ता फूलों जैसा दिख’रा है
(दिख’रा = दिख रहा)
कुमार अहमदाबादी

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बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी