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मंगलवार, मई 30

घाटी मुस्कुराने लगी


 

घाटी फिर से मुस्कुराने है लगी

झील भी नव गीत गाने है लगी

 

फिर शिकारे रोशनी से सज गये

झील जगमग जगमगाने है लगी

 

ऊन पश्मीना से जो बनती है वो

शाल अब परदेस जाने है लगी

 

चंद दशकों बाद जनता शान से

रोजी रोटी फिर कमाने है लगी

 

देखकर कश्मीर में बदलाव उस

पार जनता छटपटाने है लगी

 

देश आए बीस जब कश्मीर में

घाटी नव सपने सजाने है लगी

कुमार अहमदाबादी

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