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शुक्रवार, मई 26

अदाकारी नहीं देखी(मुक्तक)



सफल पर ढोंगी लोगों की अदाकारी नहीं देखी
सरल शालीन इंसानों की गद्दारी नहीं देखी
समझते हैं वे अभिनय कब कहां कितना दिखाना है
बहारों ने कभी फूलों की मक्कारी नहीं देखी
कुमार अहमदाबादी
आखिरी पंक्ति एक शरद तैलंग साहब की ग़ज़ल में पढ़ने के बाद रचना बनी है।


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चल जल्दी चल (रुबाई)

  चल रे मन चल जल्दी तू मधुशाला  जाकर भर दे प्रेम से खाली प्याला मत तड़पा राह देखने वाली को  करती है इंतजार प्यासी बाला  कुमार अहमदाबादी