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शुक्रवार, दिसंबर 15

आज्ञा दो पागल जीने की(रुबाई)

 


आज्ञा दो पागल होकर जीने की 
फूलों से होठों का रस पीने की
मन में है इक मीठी मीठी इच्छा
मादक धड़कन सुनने दो सीने की
कुमार अहमदाबादी

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मुलाकातों की आशा(रुबाई)

मीठी व हंसी रातों की आशा है रंगीन मधुर बातों की आशा है  कुछ ख्वाब एसे हैं जिन्हें प्रीतम से मदमस्त मुलाकातों की आशा है  कुमार अहमदाबादी