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मंगलवार, दिसंबर 26

खुद्दार हूं मैं

 


ऐसी तस्वीरें बहुत पीड़ादायक होतीं है,इन तस्वीरों में कब रंग भरे जाएंगे क्या कोई कह सकता है?या इन्हें साल दर साल स्याह ही रहना होगा??
Uggar Bishnoi की वाल से -देखिए
ऑनलाइन शॉपिंग की दुनिया से परे हटकर ये तस्वीर उज्जैन से आई है सौजन्य धना शर्मा ने अपनी वालपे ये तस्वीर डाली थी लेकिन अंदर के पत्रकार ने हिला कर रख दिया। मेने बुजुर्ग की आंखों में आशा उमीद दो पैसे मिलने की देखी की कहीं से मिल जाये मैने उन झुर्रियों को देखा जो उम्र के पड़ाव में आखिरी सांस तक शरीर को सहेजे हुए है मेने उस कुर्ते नुमा शर्ट को देखा जो ये कह रहा हो मानो की कोई तो इस बोझ को कम कर दो इन सामान को खरीद कर वास्तव में बाबा महाकाल की नगरी में ये दृश्य दिल को छू गया। जहाँ एक और कम उम्र के नौजवान बड़ी बड़ी कम्पनी बनाकर एमेजॉन फ्लिपकार्ट से घर बैठे समान भेजकर करोड़ो अरबो की कमाई कर रहे है वही दो जून की रोटी के लिए इस बुजुर्ग की मशक्कत सोचने पर मजबूर कर रही है कि क्या अमीरी गरीबी का फासला इतना बढ़ेगा या सोच कर मेहनत को बहुत पीछे छोड़ जाते। पूरे समान को जोड़े तो 100 रुपये से ज्यादा नही होगा पर मजबूरी या यूं कहें कि किस्मत इंसान को कितना परेशान करती है ये सीधा सीधा उदाहरण है। समय के आगे किसी की नही चलती ऐसा कहते है पर में अनुरोध विनती करता हु ऐसे लोग जहा दिखे जैसे दिखे जो हो सके कुछ न कुछ खरीद लिया करे क्योंकि आपके खरीदने से उसके घर मे शाम का चूल्हा या उसकी जो मजबूरी रही होगी उसकी पूर्ति हो जाएगी। । क्योंकि जिस पैसों से इनका काम हो जाएगा वो पैसे शायद आपके लिए छोटा मोटा खर्च हो सकता है।
खुद्दार हूँ मैं गद्दार नहीं
लाचार हूँ मैं बीमार नहीं
कुमार अहमदाबादी

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