Translate

गुरुवार, दिसंबर 7

छटपटा रही है कब से (रुबाई)


 मन ही मन मुस्कुरा रही है कब से

आंखें भी गुनगुना रही है कब से

मौसम का है नशा ये या यौवन का

मछली सी छटपटा रही है कब से

कुमार अहमदाबादी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

बेमौसम बरसात (रुबाई)

जब जब होती है बेमौसम बरसात  शोले बन जाते हैं मीठे हालात  कहती है बरसात आओ तुम भीगो हौले हौले फिर भीगेंगे जज़बात  कुमार अहमदाबादी