शंभुस्वयंभुहरयो हरिणेक्षणानां
येनाक्रियन्त सततं गऋहकुम्भदासाः।
वाचामगोचरचरित्रविचित्रताय
तस्मै नमो भगवते मकरध्वजाय।। १ ।।
जिसने ब्रह्मा, विष्णु, महेश को हमेशा के लिये मृगनयनी सुंदरीयों के घर के काम करने वाला दास बना दिया था। जिस की वाणी से उस के विचित्र चरित्र का पता नहीं चलता। उस भगवान प्रेमदेव (कामदेव) को नमस्कार।
श्री भर्तुहरी विरचित श्रंगार शतक के पहले श्लोक के मनसुखलाल सावलिया द्वारा किये गये गुजराती भावानुवाद का हिन्दी भावानुवाद
भावानुवादक - कुमार अहमदाबादी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें